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प्रवचन- २
हाँ, धर्म से धन मिलता है :
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तुम्हें पाँच इन्द्रिय के विषयसुख चाहिए? शब्द-रूप-रस-गंध और स्पर्श के मनोहर सुंदर श्रेष्ठ विषय चाहिए ?
धर्म देता है इन श्रेष्ठ विषयों को । बोलते चलो, क्या चाहिए तुम्हें?
देवलोक के दिव्य सुख चाहिए? देव बनना है ? धर्म देवलोक के दिव्य सुख भी देता है। अवश्य देता है ।
अच्छा, तुम्हें ऐसे सुख नहीं चाहिए, मोक्षसुख चाहिए? मोक्ष के अनन्त, अक्षय सुख चाहिए? मिलेंगे वे सुख, धर्म ही देगा। धर्म के अलावा मोक्ष का सुख कोई दे ही नहीं सकता ।
अर्थप्रधान और कामप्रधान जीवों को आश्चर्य होता है यह बात सुन कर ! जिनके जीवन में अर्थ- धनसंपत्ति ही सर्वस्व है और इन्द्रियों के विषयसुख ही सब कुछ हैं, ऐसे जीवों को धर्म की ओर मोड़ना आसान काम नहीं है। ऐसे जीवों को मोक्षमार्ग के पथिक बनाना सरल काम नहीं है । संसार में ज्यादातर लोग अर्थप्रेमी और कामभोगप्रेमी ही होते हैं। उनको धर्मप्रेमी बनाना है। मिटाना है उनका अर्थप्रेम और कामभोगप्रेम, इसके लिए बताते हैं धर्म का फल अर्थप्राप्ति और कामप्राप्ति ! स्वर्गप्राप्ति और मोक्षप्राप्ति !
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धर्म-सुख की 'फैक्टरी' :
यह मत समझना कि जीवों को लालच दे रहे हैं ! धर्म की ओर खींचने के लिए यह कोई लालच नहीं बताई गई है। धर्म की शक्ति का सच्चा परिचय दिया गया है। धर्म सभी प्रकार के सुख दे सकता है। संसार में और मोक्ष में, जितने भी सुख हैं, सभी के सभी सुख धर्म का ही उत्पादन है। धर्म का ही 'प्रोडक्शन' है। सुखों का उत्पादन धर्म की फैक्टरी में ही होता है। फैक्टरी जो होती है, घटिया, बढ़िया सभी प्रकार का माल निकालती है। धर्म की फैक्टरी में से घटिया, बढ़िया सभी प्रकार का सुख निकलता है। कैसा उत्पादन करना, आप पर निर्भर करता है। पैदा होगा सुख ही । धर्म की फैक्टरी में से दुःख का उत्पादन होता ही नहीं । दुःख का उत्पादन होता है पाप की फैक्टरी में। यह वास्तविकता है। जीवों को लुभाने के लिए आचार्य ने यह कोई सफेद झूठ नहीं बोला है। पूर्ण सत्य है । धर्म धन देता है, कामभोग देता है, स्वर्ग और मोक्ष देता है ।