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सूत्र ५४-५७
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एवं धम्मं विकम् अहम् परिव बाप असे व सोय ॥
धम्मं जहमाणस अधम्मं परिवज्जमागस्स सामडिएम- धर्म का परित्याग करने वाले की और अधर्म को स्वीकार तुलणाकरने वाले की गाड़ीवान से तुलना
१४. जहा सावित्री जाणं सहिन्या महा दिसमं मागमोडी, अछे भमम्मि सोन्द्र ॥
५४. जिस प्रकार गाड़ीवान प्रशस्त मार्ग को छोड़कर अप्रशस्त मार्ग में गाड़ी चलाता है तो वह गाड़ी की बुरी टूटने पर चिन्तित होता है।
- उत्त. अ. ५, मा. १४-१५ होता है ।
धम्माराहगस्स जूअकारेण तुलणा५५. कुए अपराजिए महा असेहि कुरानेहि कडमेव गहाय णो कलि, नो तोयं नो देव वावरं ॥
एवं लोगंमि ताइणा, बुइएज्यं जे धम्मे अणुतरे । तंति उत्तमं साडिए ।
— सूप. सू. १, अ. २. उ. २, गा. २३-२४ अधम्मं कुणमाणस्स अफला राइओ५६. जा जा यच्च रमणी, न सा पडिनियत्तई । अहम्मं कुणमाणस्स, अफला जंति राइओ ।"
-उत्त. अ. १४, गा. २४
धम्मं कुणमाणस्स सफला राहओ
धर्म करने वाले की सफल रात्रियाँ
जा जा यश्च रयणी, न सा पडिनियत्तई । धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जति रद्दअरे ।
- उत्स. अ. १४, मा. २५
धम्म पायेण सुट्टी अपाये हों१७. महाजो महन्तं तु अपात्र पाई। गच्छन्तो से ही होई, छुहा तहाए पीडिओ ॥
एवं धम्मं बकाअगं, जो गच्छद परं भवं । गच्छन्तो सो दुही होइ, वाहीरोगेहि पोडिओ ॥
महन्तं पद छतसरे सुही हो छुहा-सहा विवज्जिओ ॥ एवं धम्मं पि काऊणं जो गच्छइ परं भवं । सोहो
जहा गेहे पलिसम्मि, तस्स गेहस्स जो पहू । सारमण्डाणि नीड, असारं अवरज्भ
धर्म-ज्ञाना
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उसी प्रकार धर्म को छोड़कर अधर्माचरण करने वाला मनुष्य मृत्यु आने पर अक्ष-मग्न गाड़ीवान के समान निन्दित
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धर्म-आराधक की द्यूतकार से तुलना
५५. जिस प्रकार अपराजित चतुर जुआरी जुआ खेलते समय कृत नामक स्थान को ही ग्रहण करता है किन्तु कलि, त्रेता एवं द्वापर स्थानों को ग्रहण नहीं करता है ।
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इसी प्रकार पंडित (शेष स्थानों को छोड़कर स्थान को ग्रहण करने वाले द्यूतकार के समान) शेष धर्मों को छोड़कर इस लोक में जगत्राता के कहे हुए अनुत्तर धर्म को ग्रहण करे। अधर्म करने वाले की निष्फल रात्रियों
५६. जो ये दिन रात व्यतीत होते हैं उनकी पुनरावृत्ति नहीं होती है. अधर्म करने के दिन-रात व्यतीत होते हैं।
धर्म करने वाले को सफल रात्रियों
जो ये दिन-रात व्यतीत होते हैं उनकी पुनरावृत्ति नहीं होती हैं, धर्म करने वाले के ये दिन-रात सफल व्यतीत होते हैं ।
धर्म पाथेय से सुखी, अपायेय से दुखी -
१७. जो व्यक्ति पाथेय ( पथ का संबल ) लिए बिना लम्बे मार्ग परदे है, चलते हुए भूल और प्यास से पीड़ित
होता है ।
इसी प्रकार जो व्यक्ति धर्म किए बिना परभव में जाता है. वह जाते ही व्याधि और रोगों से पीड़ित होता है और दुःखी होता है।
जो व्यक्ति गाय साथ में लेकर लम्बे मार्ग पर चलता है, वह बनते हुए भूख और प्यारा के दुःख से रहित सुखी होता हैं।
इसी प्रकार जो व्यक्ति धर्म करके परभव में जाता है. वह अल्पक जाते हुए वेदना से रहित सुखी होता है ।
जिस प्रकार घर को आग लगने पर गृहस्वामी मूल्यवान सार वस्तुओं को निकालता है और मूल्यहीन असार वस्तुओं को छोड़ देता है ।