Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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गुरुदेव के गुरुभ्राता, शिष्य परिवार : एक परिचय | ३३
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पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज के शिष्य स्थापित किये गये ।
दीक्षा के समय, ग्यारह वर्ष के लगभग वय थी। सादगी प्रिय-मधुर भाषी एवं कवि
श्री मगन मुनिजी स्वभाव से मृदुल एवं मधुर भाषी है। सादगी इनके जीवन का प्रमुख अंग है। परिधान आदि में सादगी के क्षेत्र में सौ वर्ष प्राचीन मेवाड़ी जीवन का प्रतिनिधित्व आपको मुनिश्री के जीवन में मिलेगा।
मुनिश्री बहुत अच्छे गीतकार हैं। राजस्थानी, मुख्यतया मेवाड़ी शैली की इनकी रचनाएँ आकर्षक और बड़ी उपयोगी हैं । गीतों की भाषा एकदम सरल और मेवाड़ी शैली के ठीक अनुरूप है। यही कारण है कि इनके गीतों का प्रचार केवल जैन ही नहीं अजैनों में भी बड़ा व्यापक है।
अभिव्यक्ति की सहजता और भाषा का तादात्म्य इनके गीतों का प्राण तत्त्व है। एक प्रसिद्ध गीत की पंक्ति देखिए :
आओ ए सखी री, धीमी धीमी चालो।
जनम्यो जनम्यो रे, गोकुल में कानों बंशी वालो ।। मुनिश्री के गीतों में, लोकगीत के रूप ढलने की बड़ी योग्यता है क्योंकि वे लोक राग के आधार पर ठीक-ठीक गाये जा सकते हैं। प्रसिद्ध लोकगीत घूमर की अनुरूपता का एक उदाहरण देखिये
ए म्हारा, रघुवर लेवा कद आसी ए मोरी माय । सियाजी लंका में घणों रुदन करे । पंचवटी में बाँधी, झुपड़ली।
ऐ मैं तो फल फूल खाइ ने दन काड्या ए म्हारी माय....." गणगौर भी राजस्थान का एक प्रसिद्ध लोकगीत है, श्री नेम-जन्म पर, मुनिश्री की गीतिका की तदनुरूपता का एक उदाहरण और उपस्थित किया जाता है
नेम नगीना जनम्या सखि म्हारी,
दर्शन चालां आज । अजी म्हारे हिवड़े हरष भराय
सखि म्हारी, बावीसवाँ जिनराज ॥ मुनिजी की रचनाओं के निम्न संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं-रसीले गीत, अनमोल गीत, गीत मंजरी, गीतलता, गीतों का घूम-धड़ाका, गीतों की फुलवारी, चन्दना जीत गई, सज्जन संगीत, सज्जन गीतांजली आदि ।
मुनिश्री के गीत "रसिक" नामक उपनाम से पहचाने जा सकते हैं । सौभाग्य मुनि 'कुमुद'
गुरुदेव श्री का एक शिष्य मैं भी हूँ। मैं अपना क्या परिचय दूं । "धर्म शासन एवं गुरुदेव श्री के चरणों में समर्पित एक जीवन्त पुष्प" बस मेरा इतना परिचय ही बहुत है।
१ श्री सौभाग्य मुनिजी एक अध्ययनशील, भावुक कवि, तेजस्वी लेखक और ओजस्वी वक्ता हैं। धारा प्रवाह कविता
करते जाना, संगीत की लय में नये स्तवन भजन गुनगुनाते ही रचते जाना इनका सहज स्वभाव बन गया है । जब लिखने बैठते हैं, तो बस एक ही प्रवाह में जमकर इतना लिख जाते हैं कि उसे भाव-भाषा-शैली की दृष्टि से उसे पुनः सुधारने की भी आवश्यकता नहीं रहती। आपके अनेक काव्य छप चुके हैं। "धर्म ज्योति' पत्रिका के प्राण प्रतिष्ठापक आप ही हैं । युवक संगठन और जन-जीवन से आत्मीय सम्बन्ध बनाना आपकी रुचि है। प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थ के अनेक खण्डों का लेखन एवं सुन्दर सम्पादन आपके कृतित्व का स्पष्ट प्रमाण है।
-प्रबन्ध सम्पादक
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