________________ आगम निबंधमाला व्यक्तिगत मंतव्यों, दष्टियों, कुबुद्धि-सुबुद्धि विचारकता आदि का भी असर आगमों के मूल पाठों में हुआ संभव है / भस्मग्रह के प्रभाव की अधिकता से यति वर्ग की एवं श्रमणों की शिथिलता आदि से, विभिन्न विवादों के कारण स्वार्थ बुद्धि के असर भी आगमों पर पडे संभव है। इसके अतिरिक्त लेखन परंपरा के कारण सभी को अपने पास अपने भंडारों में लिखकर या लिखवाकर संग्रहित करने में पूर्ण स्वतंत्रता रही है / जिससे भी लिपि दोष, लिपि भ्रम दोष, लहियों की भूलें, शब्द छूटना, वाक्य या लाइन छूटना, अक्षर पहिचानने में नकल करने में समझभ्रम, सोचभ्रम आदि का भी असर आया है / कभी किसी ने दुर्बुद्धि से भी शब्द, अक्षर, वाक्य मनचाहे लिखकर अपनी प्रति अपने भंडार में रखी हो यह भी संभव है / क्यों कि भस्म ग्रह के असर का और शिथिलाचार के असर का एवं कुछ स्वच्छंदता का असर भी मध्यकाल में रहा है। विद्वानों की अयोग्य कल्पना :- कई जैन विद्वान जो कि कोरे विद्वान मात्र है जिन्होने संयम का और आगम स्वाध्याय पुनरावर्तन का एवं कंठस्थ करने का अनुभव नहीं किया है उनका चिंतन कथन कई बार कई तरीकों से सामने आता है कि प्रथम आचारांग प्राचीन है वीरनिर्वाण दूसरी शताब्दि की रचना संभव है आचारांग द्वितीय श्रुतस्कंध की भाषा और वर्णन अनुसार वह वीरनिर्वाण की चौथी शताब्दी के करीब का रचा लगता / ठाणांग समवायांग भी वीर निवाण तीसरी एवं सातवीं शताब्दि की रचना हो सकती है इत्यादि विविध कथन केवल अपनी बुद्धि की एवं अपने प्रकार की विद्वत्ता की कसरत मात्र है / वास्तव में गणधर कृत आगम जो भगवान के शासन में प्रारंभ से ही कंठस्थ परंपरा में सैकडों हजारों साधु-साध्वियों में चल रहे हैं उसे निरर्थक ही कौन बहुश्रुत छेड-छाड करेगा अर्थात् छोटा करे या नया बनावे अथवा भाषा पलटे / यह सारी क्लिष्ट कल्पना, आगम कंठस्थ परंपरा के अनुभव हीन बुद्धि के अधूरे चिंतन का परिणाम है / ऐसा किसी भी धर्मशासन में किसी को अधिकार नहीं होता है / अत: बिना स्पष्ट प्रमाण या इतिहास के ऐसी कल्पनाएँ करने में कोई लाभ नहीं है / / 25