________________ आगम निबंधमाला करने से, जल को उलीचने से, सूर्य के ताप से, क्रमशः सूख जाता है / उसी प्रकार संयमी पुरुष के पास कर्म आने का मार्ग निरोध होने से करोड़ों भवों के संचित कर्म तपस्या के द्वारा निर्जीर्ण हो जाते हैं / णाणस्स सव्वस्स पगासणाए, अण्णाणमोहस्स विवज्जणाए / रागस्स दोसस्स य संखएण, एगत सोक्खं समुवेई मोक्खं // [अध्य.३२,गाथा-२] अर्थ- सम्पूर्ण ज्ञान का प्रकाश, अज्ञान और मोह का नाश तथा राग और द्वेष का क्षय होने से आत्मा एकान्त सुखमय मोक्ष को प्राप्त होता है। रागो य दोसो वि य कम्मबीयं, कम्मं च मोहप्पभवं वयंति। कम्म च जाई मरणस्स मूल, दुक्ख च जाइ मरण वयति // [अध्य.३२,गाथा-७] अर्थ- क्यों कि राग और द्वेष ये कर्म के बीज हैं / कर्म मोह से उत्पन्न होता है और वह (कर्म) जन्म मरण का मूल है, जन्म मरण को दु:ख का मूल कहा है। निबंध- 61 - सुभाषित संग्रह : आचारांग सूत्र खणं जाणाहि पंडिए / [अध्य.२, उद्दे.१] - हे पंडित ! तूं क्षण याने अवसर को जान / इणमेव णावकखंति, जे जणा धुव चारिणो / जाइ मरण परिण्णाय, चरे संकमणे दढ़े // -अध्य.२, उद्दे.३ // अर्थ- जो पुरुष मोक्ष की ओर गतिशील है, वे (विपर्यासपूर्ण जीवन) जीने की इच्छा नहीं करते, जन्म मरण को जानकर वे मोक्ष के सेत पर दृढ़ता पूर्वक चले / पत्थि कालस्स णागमो ।-अध्य.२, उद्दे.३ // - मत्यु के लिये कोई भी क्षण अनवसर नहीं है। सव्वे पाणा पियाउया सुहसाया दुक्खपडिकूला अप्पियवहा पिय जीविणो जीविउकामा / -अध्य.२,उद्दे.३ // 221 /