Book Title: Agam Nimbandhmala Part 01
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 235
________________ आग़म निबंधमाला रहित मोक्ष अवस्था को प्राप्त करते हैं / देवों के स्वामी इन्द्र बन कर आगे के भवों से मुक्त होते हैं / जे य बुद्धा अतिक्कता, जे य बुद्धा अणागया / सति तेसिं पइट्ठाण, भूयाण जगई जहा ॥अध्य.११,गाथा-३६॥ अर्थ- जो बुद्ध(तीर्थंकर) हो चुके हैं, और जो होंगे, उनका सबका सिद्ध बुद्ध होने का मूल आधार शान्ति है, जैसे जीवों का आधार पथ्वी है। सद्देसु रूवेसु असज्जमाणे, रसेसु गंधेसु अदुस्समाणे / णो जीवियं णो मरणाभिकंखी, आयाणगुत्ते वलया विमुक्के // -अध्य.१२,गाथा-२२॥ अर्थ- जो शब्दों, रूपों, रसों और गंधों में रागद्वेष नहीं करता, जीवन और मरण की आकांक्षा नहीं करता इन्द्रियों का संवर करता है, वह वलय (संसार चक्र) से मुक्त हो जाता है / समेच्च लोग तस थावराणं, खेमंकरे समणे माहणे वा / आइक्खमाणो वि सहस्स मज्झे, एगतयं साहयति तहच्चे // -(श्रुत-२,अध्य-६,गाथा-४) अर्थ- 12 प्रकार की तप साधना द्वारा श्रम करने वाले श्रमण, जीवों को मत मारो का उपदेश देने वाले माहण केवल्य द्वारा समग्र लोक को एवं त्रस स्थावर जीवों को यथावस्थित जानकर हजारों लोगों के बीच में उपदेश करते हुए भी भगवान एकान्तसेवी (रागद्वेष से रहित) की साधना में रत है। .. . .. 00000 | 235

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