________________ आगम निबंधमाला अपनी बात (स्वास्थ्य सुधार एवं प्रायश्चित्त) आगम मनीषी मुनिराज श्री के विचित्र कर्मोदय से २०११के 5 जनवरी को अचानक औपद्रविक पेट में तीव्र वेदना होने से एवं 6 महिनों में कोई उपचार नहीं लगने से तथा 15 किलो वजन घट जाने से, जिससे संयम के आवश्यक कार्य हेतु चलना आदि भी दुःशक्य हो जाने से 12 जुलाई २०११को श्रावकजीवन स्वीकार करना पडा / पुन: 5 जनवरी 2013 को 16 घंटे तक विचित्र उल्टीयें एवं दस्ते होकर उपद्रविक रोग पूर्ण शांत हो गया। दो महिने में कमजोरी भी कवर हो गई। धीरे-धीरे 2014 जनवरी तक स्वास्थ्य एवं वजन पूर्ववत् हो जाने से एवं पूरी हिंमत आ जाने से आगम संबंधी प्रकाशनका कार्य जो अवशेष था उसे पूरा करते हुए अब आगे २०१६के जनवरी से प्रायश्चित्त रूपमें (प्रायश्चित्त पूर्ण स्वस्थ होने पर ही किया जा सकता है इसलिये) एक वर्ष की निवृत्ति युक्त संलेखना तथा दिसंबर २०१६में दीक्षा तथा संथारा ग्रहण कर आत्मशुद्धि एवं साधना आराधना का प्रावधान रखा है। संलेखना के एक वर्ष के कालमें चार खंध पालन, राजकोट से बाहर जाने का त्याग, प्रायः विगय त्याग या आयंबिल उपवास आदि, मोबाइल त्याग आदि नियम स्वीकार / अंत में जिन संतो के पास जिस क्षेत्र में दीक्षा लेना होगा वहाँ वाहन द्वारा पहुँच कर पाँच उपवास के साथ दीक्षा संथारा ग्रहण किया जायेगा। व्याधि :- पेट में कालजे की थोड़ी सी जगह में हाईपावर असीडीटी, सांस और हार्ट (धडकन) ये तीन रोग एक साथ थे, असा वेदना सप्टेम्बर-२०११ तक अर्थात् 9 महिना रही थी। निवेदक :डी.अल. रामानुज मो. 98980 37996 239