Book Title: Agam Nimbandhmala Part 01
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 202
________________ आगम निबंधमाला .. निर्दोष संयम का पालन करते हुए विचरण करे / (6) णाणेण मुणि होई / -उत्तरा. 25 / ज्ञान की आराधना से मुनि कहा जाता है। (7) बंभचरेण बभणो / -उत्तरा. 25 / ब्रह्मचर्य के पालन से सच्चा ब्राह्मण कहा जाता है। (8) सोहि उज्जुयभूयस्स / -उत्तरा. 3 / आत्मशुद्धि-सरल आत्माओं की होती है। अमायं कुव्वमाणे वियाहिए। -आचा. अ. 1 उ. 3 / माया का सेवन आचरण नहीं करने वाला श्रमण कहा जाता है / (9) खतिक्खमे / -उत्तरा. 21, खमासणो- आव. / मुनि क्षमा को धारण करे, अखट क्षमाभावना को धारण करने वाला श्रमण / (10) अणिकेओ परिव्वए / -उत्तरा. 2 / कहीं भी अपना घर नहीं बनाता हुआ विचरण करे / क्षेत्र एवं व्यक्ति में कहीं भी ममत्व-मेरापन नहीं करे / (11) तेण वुच्चंति साहुणो।-दश.१ / साहवो तो चियत्तेण / - दश. 5 / किसी के आश्रय से नहीं रहने वाले निराश्रयी एवं मधुकर वृति करने वाले साधु कहे जाते हैं / साधु प्रतीतकारी, प्रियकारी वचनों से प्रेमभाव पूर्वक आहार का यथाक्रम से सुश्रमणों को निमंत्रण करे। भावानुवाद-तात्पर्यार्थ :(1) समन- सदा समभावी बनो, विषम भाव दूर रखो / (2) श्रमण- आलसी मत बनो उद्यमशील बनो, अप्रमत्त भाव मे लीन रहो / प्रमत्त भाव से दूर रहो / (3) संयत- 6 काया जीवों की यतना से प्रत्येक प्रवति करो। .. (4) निर्ग्रन्थ- राग, द्वेष, कलुषता, घणा, निंदा, नाराजी की गांठे छोड़ो / (5) भिक्षु- गवेषणा विधि में उपेक्षा न करो, इमानदारी रखो.। (6) मुनि- ज्ञान की उत्कष्ट खप रखो, स्वाध्याय में लगे रहो / (7) ब्राह्मण- ब्रह्मचर्य का शुद्ध पालन करो / कम खाओं / तप करो। | 20 - -

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