________________ आगम निबंधमाला अषाढ पुण्णिमातो आढत्तं मग्गंताणं जाव भद्दवय जोण्हस्स पंचमीए, एत्यंतरे जइ ण लद्धं ताहे रुक्खहेढे ठितो तो वि पज्जोसवेतव्वं / अण्णया पज्जोसवणा दिवसे आसणे आगते अज्जकालगेण सातवाहणो भणितो- भद्दवय जोण्हस्स पंचमीए पज्जोसवणा। अर्थ :- आषाढ़ी पूर्णिमा से लेकर यावत् भादवा सुदी पंचमी तक चातुर्मास क्षेत्र की गवेषणा कर रह जाना चाहिए / इतने समय के बीच भी चातुर्मास योग्य क्षेत्र न मिले तो वक्ष के नीचे रुक जाना और पर्युषण करना / __ "चतर्मास में किसी समय पर्यषण दिवस निकट आया जानकर कालकाचार्य ने सातवाहन राजा से कहा कि भादवा सुदी पंचमी को पyषण है / " (2) निशीथ सूत्र उद्देशा 10 में- अप!षणा के दिन पर्वृषण करे और पyषण के दिन पर्दूषण न करे तो गुरुचौमासी प्रायश्चित्त कहा गया है / इन सूत्रों की चूर्णि मे अनेक बार भादवा सुदी पंचमी का कथन किया गया है तथा अनेक बार एक मास 20 दिन का कथन किया है। किन्तु इस बीच महिने बढ़ने सम्बन्धी चर्चा नहीं की है। अत: चूर्णिकार के समय तक अधिक मास की चर्चा के बिना भादवा सुदी पंचमी एक मत से निश्चित आगमिक पर्दूषणा तिथि थी। स्वयं कालकाचार्य ने भी राजा से उसी तिथि का कथन किया था। , यहाँ निशीथ सूत्र में किंचित् भी आहार पानी का पर्दूषण के दिन सेवन करने पर गुरु चौमासी प्रायश्चित्त कहा है तथा सवंत्सरी (पyषण) के दिन तक लोच नहीं करे तो भी उतना ही प्रायश्चित्त कहा है / इस प्रकार शास्त्रकार "पर्युषण" शब्द से संवत्सरी का निर्देश करते है। उसके लिये प्राचीन आचार्य भादवा सुदी पंचमी का स्पष्ट निर्देश करते हैं। ___ अधिक मास होने सम्बन्धी विवाद बहुत बाद का है तथा निरर्थक विवाद मात्र खड़ा किया हुआ है क्यों कि अधिक मास अन्य सभी धार्मिक पर्यों में नगण्य किया जाता है अर्थात् उस महीने को नहीं गिना जाता है यथा१. चैत्र दो आवे तब महावीर जयन्ति दूसरे चैत्र में की जाती है। 2. वैशाख दो हो तो अक्षय ततीया दुसरे वैशाख मास में की जाती है। 212 // - - - - - - - -