Book Title: Agam Nimbandhmala Part 01
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti
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________________ आगम निबंधमाला देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण के 150 वर्ष बाद भाष्यकार हुए हैं / .. अत: अपना अपना मन कल्पित दुराग्रह और हस्तक्षेप छोड़कर ऋषि पंचमी को ही संवत्सरी पर्वं का आराधन करें / यही निश्चित्त आगम पर्युषणा दिन है / पूर्वाचार्यों के निर्णय में एवं आगमों में कहीं भी उदय तिथि या अस्त तिथि या पाँचम की घड़ियां आदि का कोई भी उल्लेख-घोटाला नहीं है / सभी तीर्थंकरों का जन्म भी उदय तिथि से ही आगमों में सूचित किया गया है और आज भी उसी के अनुसार मनाया जाता है / उसमें अस्त तिथि या घड़ियाँ नहीं देखी जाती हैं / सभी सामान्य तिथियों की गिनती तो समस्त जैन समाज में आज भी उदय तिथि से ही(पंचांगनुसार) मानी जाती है / फिर यह पर्व तिथियों के लिए अस्त तिथि का अडगा बिना आगामाधार का क्यो स्वीकार किया जाता है ? अतः सम्पूर्ण जैन समाज मिलकर :- 1. किसी एक लौकिक पंचांग को सर्व सम्मति से प्रामाणिक स्वीकार करे / 2. फिर उसमें लिखित ऋषि पंचमी के दिन ही संवत्सरी करें / 3. और उसमे लिखे पक्ष के अन्तिम दिन ही पक्खी प्रतिक्रमण करें / . इसका कारण यह है कि पाक्षिक क्षमापनादि पक्ष के समाप्त होने पर ही करना उचित है एवं पक्खी के दूसरे दिन पंचांग मे सूचित दूसरा पक्ष प्रारंभ हो जाना चाहिए / अन्य पर्व दिन भी पंचांग सूचित तिथि को ही करना चाहिए / उसमें अपना-अपना अडंगा या जैन पंचांग के नाम का अडंगा डालकर फूट-फजीता नहीं करना चाहिए / तभी पूर्वाचार्यों के निर्णय का सम्मान होगा। इसके लिए तेरस, चौदस को छोड़कर केवल पूनम एवं अमावस को ही पक्खी, चौमासी पर्वतिथि मानना चाहिए / तेरस चौदस को पक्खी करना आगमिक नहीं ह क्यों कि वह पक्ष का अन्तिम दिन नहीं है / निबंध-५७ संवत्सरी विचारणा : निर्णय (1) दशाश्रुतस्कंध सूत्र की नियुक्ति गाथा 16 की चूर्णि में |211 //
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