Book Title: Agam Nimbandhmala Part 01
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 209
________________ आगम निबंधमाला पंचांग के अनुसार ही सभी तिथि या पर्व आदि माने-मनावें / पूर्वाचार्यों ने 1300 वर्ष पहले सर्व सम्मति से लौकिक पंचांग को आगम सम्मत स्वीकार किया है। पूर्वाचार्यों का निर्णय : 1300 वर्ष पूर्व देवर्धिगणि क्षमाश्रमण के पश्चात् निकटवर्ती समय में हमारे दिग्गज विद्वान आचार्यों ने यह सामूहिक निर्णय लिया था कि 'हमारा ज्योतिष शास्त्र आगम-ज्ञान अत्यधिक नष्ट हो चुका है इससे तिथि पर्व निर्णय सही नहीं हो सकता है / लौकिक पंचांग पूर्ण रूप से आगम मूलक ही है, अर्थात् आगम से अविरुद्ध है, आगम सम्मत ही है। अत: अब से हमें अपन सभी पर्व तिथियों का निर्णय इस लौकिक पंचांग के आधार से ही करना है / यह बात आचार्य सिद्ध सेन की इन दो गाथाओं से जानी जा सकती है विषमे समय विसेसे, चरण ग्गह चार रिक्खाण / पव्वतिहीण य सम्म, पसाहगं विगलियं सुत्तं // 1 // तो पव्वाई विरोह णाउण, सव्वेहि गीय सरीहि / आगम मूल मिण पि यं, तो लोइय टिप्पणय पगय // 2 // अर्थ- समय की विषमता के कारण ग्रह नक्षत्र की गति आदि सम्बन्धी पर्व तिथियों का सम्यग् ज्ञान कराने वाला श्रुत वर्णन व्यवछिन्न हो गया है // 1 // ___अत: पर्व निर्णय आदि तिथि निर्णय में विरोध आता हुआ जानकर सभी गीतार्थ बहुश्रुत आचार्यों ने इस लौकिक पंचांग को "आगम मूलक ही है", ऐसा जानकर इसे स्वीकार किया है / तात्पर्य यह है कि सभी पर्व तिथि आदि का निर्णय लौकिक पंचांग से मानना आगम सम्मत स्वीकार किया // 2 // इन दो भाष्य गाथाओं में लौकिक पंचांग को पूर्ण रूप से आगम सम्मत माना है और इसी के अनुसार पर्व तिथी मानने का निर्णय लिया है / अत: अब किसी को भी अस्ततिथि, घड़ी-पल का अडंगा डालन का अधिकार नहीं है / एवं प्रेस गलती आदि भूलों के दोष के निवारणाथ अन्य पंचागों से मिलान अवश्य कर लेना चाहिये / 1.209 /

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