Book Title: Agam Nimbandhmala Part 01
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 218
________________ आगम निबंधमाला अर्थ- कुश की नोक पर लटकते हुए ओस बिन्दु की अवधि जैसे थोड़ी होती है वैसे ही मानव जीवन की गति है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाण मत कर / दुलहे खलु माणुसे भवे, चिर कालेण वि सव्व पाणिणं / गाढ़ा य विवाग कम्मुणो, समय गोयम मा पमायए // [अध्य.१०,गाथा-४] अर्थ- बहुत लम्बे काल तक मनुष्य भव प्राणी को नहीं मिल पाता है क्यों कि अनेक संचित कर्मों के प्रगाढविपाक के कारण वह नाना योनियों में जन्म मरण करते हुए विश्राम ही नहीं पाता है अत: हे गौतम! प्राप्त इस अवसर में अब समय मात्र भी प्रमाद नहीं करना चाहिये। खण मित्त सुक्खा बहुकाल दुक्खा, पगाम दुक्खा अणिगाम सुक्खा / संसार मोक्खस्स विपक्खभूया, खाणी अणत्थाण हु काम भोगा // .-[अध्य.१४,गाथा-१३] अर्थ- काम भोग क्षण भर के लिये सुख देने वाले हैं और चिरकाल तक दुःख देने वाले हैं / ये अनर्थो की खान है एवं मोक्ष के अर्थात् कर्म संसार से मुक्त होने के ये पक्के विरोधी है क्यों कि भोगासक्त व्यक्ति संसार बढ़ाता है / जा जा वच्चइ रयणी, ण सा पडिणियत्तई.। अहम्म कुण माणस्स, अफला जति राइओ॥ [अध्य.१४,गाथा-२४] जा जा वच्चइ रयणी, ण सा पडिणियत्तई / धम्म च कुणमाणस्स, सफला जति राइओ / [अध्य.१४,गाथा-२५] अर्थ- जो जो रात्रियाँ बीत रही है वे लौट कर नहीं आती, अधर्म करने वाले की वे रात्रियाँ निष्फल है। धर्म करने वाले की वे रात्रियाँ सफल होती है। देव दाणव गंधव्वा, जक्ख रक्खस्स किण्णरा / बंभयारिं णमंसति, दुक्करं जे करति तं // [अध्य.१६,गाथा-१६] अर्थ- देव दानव गन्धर्व यक्ष राक्षस, किन्नर भी उन्हें नमस्कार करते हैं, जो दुष्कर ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं / एस धम्मे धुवे णिच्चे, सासए जिणदेसिए / सिद्धा सिज्झति चाणेण, सिज्झिस्सति तहावरे // [अध्य.१६,गाथा-१७ | 218

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