________________ आगम निबंधमाला ____ बाह्य तप में श्रावक श्राविकाओं में जो तप की वद्धि इस निस्सार खान-पान के समय में भी हो रही है वह अनुपम है, वर्णनीय है / चातुर्मास आदि के वर्णनों को देखने-पढ़ने वालों से कुछ छिपा नहीं है / छोटी उम्र के संत संती भी तप में मासखमण तक बढ़ जाते हैं। गाँवगाँव में तपस्या की झड़िये लगती है / आयंबिल की ओलियाँ, एकातर तप(वर्षी तप) करने वालों के उत्साह की भी कमी नहीं दिखती है / कई तो वर्षों से एकांतर तप, आयंबिल, एकाशन आदि करते हैं / कोई वर्ष भर बेले, तेले और पंचोले-पंचोले पारणा करते है तो कोई महिनों तक निरंतर निराहार रह जाते हैं / कोई साधु श्रावक संलेखना, संथारा युक्त पडित मरण प्राप्त करते हैं / वे दो तीन मास तक के संथारे को भी प्राप्त करते हैं / यह धर्म का चौथा तप प्राण कितना जागत हैं देखें / जैन धर्म के जीवन की कसौटी करने का यह श्रेष्ठ दर्पण है किन्तु जनसंख्या की अपेक्षा तो बहुमत जैन धर्म का दुनिया में तीर्थकरों के समय भी नहीं होता है / अनेकता-एकता और बहुलता यह जैन धर्म के प्रभाव की सही कसौटी नहीं है / तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के जीवन समय में दो तीर्थंकर और उनके श्रावक समाज का अस्तित्व और वातावरण दुनिया के सामने था / सैकड़ों लब्धिधारी और भगवान स्वयं अतिशयवान थे। सैंकड़ो हजारों देव भी आते थे। तो भी अनेकता न रुकी / जमाली ने अपने को छद्मस्थ होते हुए भी भगवान के सामने केवली होने का स्वाँग धर कर अलग पंथ चलाया। भगवान के जीवन काल में धर्म की अनेकता में भी धर्म जीवित था, मोक्ष चालु था तो अब 2000 वर्ष के भस्म ग्रह के प्रभाव के बाद हुंडावसर्पिणी काल प्रभाव में और विशिष्ट ज्ञानियों लब्धियों के अभाव में अनेकरूपता धर्म के जीवन में क्यों शंका पैदा करती है ? तीर्थंकरों के सत्ता काल में भी सारे विश्व को जैन धर्म पढ़ाना सुनाना मनाना किसी इन्द्रों के हाथ में नहीं था / स्वयं भगवान महावीर के प्रमुख श्रावक के घर भी मांसाहार हो जाना असम्भव नहीं था। फिर भी भगवान और भगवान के धर्म के प्राण में शंका नहीं की जाती थी। भगवान के समवसरण में निरपराध भिक्षुओं को एक अन्यायी / 206]