Book Title: Agam Nimbandhmala Part 01
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 204
________________ आगम निबंधमाला (1) ज्ञान :- यद्यपि वर्तमान में सिंधु में बिंदु जितना ज्ञान शेष रहा है तथापि इतना जैन साहित्य उपलब्ध है कि आज के लिये मानव को पर्याप्त मोक्ष साधन है। कई संत-सतियाँ आगम अभ्यास, चिंतन मनन और उसका प्रवचन विवेचन समाज को भिन्न-भिन्न रूप में देने में सतत अनवरत प्रयत्नशील है / वे स्वयं भी पढ़ते हैं अन्य के लिये सरल साहित्य तैयार करते हैं / कंठस्थ करने में और वाचन करने में भी आगम प्रकाशन के निमित से साधु समाज व श्रावक समाज में जागति मौजूद है। कई संत सतियों का श्रावक श्राविकाओं का जीवन आगम वाचन में लगा हुआ है / जनता में अनेक तरह से स्वाध्याय की प्रेरणा और प्रवत्ति चालू है। सैकड़ो धार्मिक पाठशालाएँ, धार्मिक विभिन्न शिविर, धार्मिक पत्र पत्रिकाएँ, कथा साहित्य, प्रचारक मंडलों के भ्रमण चालू हैं। चारों ही तीर्थ जैन अजैन को यथायोग्य ज्ञान देने में पुरुषार्थरत हैं। साधु-साध्वी के सिवाय सैकड़ों व्याख्याता श्रावक तैयार हुए हैं और जनता में जैन धर्म का प्रचार करते हैं / संत-सती भी भ्रमण कर धर्म प्रचार में ही बहुत समय का भोग देते हैं / यह जैन धर्म का ज्ञान प्राण सुप्त है या जागत कोई भी सोच कर समझ सकता है। . (2) दर्शन :- आज जिन शासन में अवधिज्ञानी नहीं, मनः पर्यवज्ञानी नहीं, केवल ज्ञानी नहीं, पूर्वो के पाठी नहीं, कोई चमत्कारी विद्याएँ लब्धियें भी नहीं, फिर भी जैन समाज की धर्म के प्रति श्रद्धा निष्ठा, भक्ति भाव, गुरुओं के प्रति आदर भक्ति भाव और आगमों के प्रति श्रद्धा भक्ति आज भी मौजूद है। प्राणों से भी प्रिय लगने वाली अपनी संपत्ति का धर्म व गुरुओं के इशारे में ही लाखों की तादादं का ममत्व छोड़ देते हैं / कई पर्युषण के दिनों में घर का त्याग कर समय का भोग देने को तत्पर है / कई निवत्तिमय सेवा देने में तत्पर है / प्रायः सभी जैन फिरकों वाले अपने गुरुओं व धर्म के प्रति तन, मन, धन से सेवा देने में बढ़ रहे हैं / संयम लेने में भी पीछे नहीं रहते हैं / सैकड़ों शिक्षित युवक युवतियाँ दीक्षा लेकर अपने को धन्य मानते हैं / सैकड़ों युवक संसार में रहते हुए भी पर्युषण में साधु के समान पाट पर बैठने में नहीं डरते और सैकड़ो हजारों लोगों को संत-सती की पूर्ति का आभाष कराते हैं / 204 Du

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