________________ आगम निबंधमाला - जैन धर्म में अपने तीर्थंकरों के प्रति, नवकार मंत्र के प्रति, व्रत नियमों के प्रति, श्रावक व्रतों व संयम जीवन के प्रति भी सैकड़ों हजारों लाखों मनुष्यों की श्रद्धा बनी हुई है। सैकड़ों प्रहारों के आते हुए भी और विज्ञान की चकाचौंध में भी जैनों की धर्म निष्ठा और उन्नति देख अन्य लोग भी प्रभावित होते हैं / देश के अनेक नेता भी जैन धर्म के कई प्रसंगो में उपस्थित होते हैं और जैन धर्म के प्रति, जैन संतों के प्रति अपनी सद्भावना प्रकट करते हैं / यह जैन धर्म का दर्शन(श्रद्धान) प्राण सुप्त है या जागत सोचें / (3) चारित्र :- आज के मानव को संपूर्ण कर्मों से मुक्ति इस भव में नहीं हो सकती है, यह सभी धर्मी जानते हैं / फिर भी जैन समाज में धर्म आचरण की प्रवत्ति दिनों दिन वद्धि होते जा रही है / जैन धर्म क आचरण मार्ग के दो विभाग है / (1) सर्व विरति(संयम) (2) देश विरति श्रावक व्रत / सर्व विरति धारक संत-संतियों का समाज में अभाव नहीं हुआ है और नये धारण करने वालों का शिलशिला भी चालू है / उसमें भी युवक युवाओं का नंबर वद्धों से भी आगे है / साथ ही शिक्षित अनेक डिग्री हासिल किए हुए युवक भी दीक्षा लेने में नंबर रखते हैं / कई परिवार के परिवार अग्रसर हैं तो कई छोटी उम्र में सजोड़े दीक्षित होने में भी पीछे नहीं रहते हैं / देशविरति धारण करने में भी समाज में व्यक्ति पीछे नहीं है। हजारों जैनी व्रतप्रत्याख्यान, नित्य नियम, सामायिक, 14 नियम, पोषध आदि करते हैं / 12 व्रतधारी भी बनने वालों का प्रवाह चालू है / पूर्ण निवत्ति जीवन वालों का भी अभाव नहीं है / संत सतियों का चातुर्मास प्राप्त करके प्रसन्नतापूर्वक धर्माराधन में अजोड़ वद्धि करते हैं। (4) तप :- आभ्यंतर बाह्य रुप से दो प्रकार का है। उसमें भी श्रावक व साधु समाज सुस्त नहीं हुआ है / आभ्यंतर तप में आज ज्ञान, ध्यान, शिविर प्रवत्तिये, गुरुओं के प्रति दर्शन करने, विनय करने की प्रवत्तिये भी चालू है / साधुओं में सेवा विनय के अनूठे प्रमाण समाज के सामने समय-समय पर आते हैं / साधुओं के स्वाध्याय ज्ञान का प्रचार भी अनेक जगह देखने को मिलता है / ध्यान की विचारणा में भी संतसतियाँ अग्रसर हो रहे हैं / | 205