________________ आगम निबंधमाला आगमानुसार पाँचों महाव्रतों को या सम्पूर्ण जिनाज्ञा को पालन करना नहीं कहा जा सकता / अर्थात् शुद्धाचारी श्रमणों को भी पूर्व निबंधों में कही गई जिनाज्ञाओं से विपरीत प्रवत्तियों के सूक्ष्मावलोकन से अपने शुद्धाचार या शिथिलाचार का परीक्षण अवश्य करना चाहिए / निबंध- 16 अवंदनीय वंदनीय का सूक्ष्म-स्थूल ज्ञान अवन्दनीय कौन होता है ? इसका भाष्य गाथा 4367 में स्पष्टीकरण किया गया है मूलगुण उत्तरगुणे, संथरमाणा वि जे पमाएंति / __ ते होत अवंदणिज्जा, तट्ठाणारोवणा चउरो // अर्थ :- जो सशक्त या स्वस्थ होते हुए भी अकारण मूलगुण या उत्तरगुण में प्रमाद करते हैं अर्थात् संयम में दोष लगाते हैं, पार्श्वस्थ आदि स्थानों का सेवन करते हैं वे शुद्धाचारी श्रमणों के लिये अवन्दनीय होते हैं / उन्हें वन्दन करने पर लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है / अर्थात् जो परिस्थितिवश मूलगुण या उत्तरगुण में दोष लगाते हैं वे अवन्दनीय नहीं होते हैं / वन्दन करने या नहीं करने के उत्सर्ग, अपवाद की चर्चा सहित विस्तत जानकारी के लिये आवश्यक नियुक्ति गा. 1105 से 1200 तक कुल-९५ गाथा और उसकी टीका का अध्ययन करना चाहिए / सामान्य पाठकों के लिये उसका संक्षिप्तसार यहाँ दिया जायेगा एवं सामाजिक संप्रेक्षण भी प्रस्तुत किया जायेगा। उत्सर्ग से वन्दनीय अवन्दनीय :असंजयं न वंदिज्जा, मायरं पियरं गुरुं / सेणावई पसत्थारं, रायाणं देवयाणि य // समणं वंदिज्ज मेहावी, संजयं सुसमाहियं / पंचसमिय तिगुत्तं, असंजम दुर्गच्छगं ॥-गा.११०५-६ आव नि. | 87