Book Title: Agam Nimbandhmala Part 01
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti
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________________ आगम निबंधमाला शय्यातर कहलाता है। उसके घर का आहार, वस्त्र आदि शय्यातर पिंड कहलाते हैं, उन्हें ग्रहण नहीं करना शय्यातर पिंड कल्प है / (5) मासकल्प- श्रमण एक ग्रामादि में 29 दिन से ज्यादा न रहे और श्रमणी 58 दिन से ज्यादा न रहे इसे मासकल्प कहते हैं / . (6) चौमासकल्प- आषाढी पूनम से कार्तिक पूनम तक आगमोक्त कारण बिना विहार नहीं करना किन्तु एक ही जगह स्थिरता पूर्व रहना यह चौमासकल्प है / (7) व्रतकल्प- पाँच महाव्रत एवं छठे रात्रि भोजन व्रत का पालन करना या चातुर्याम धर्म का पालन करना व्रतकल्प है। (8) प्रतिक्रमण- सुबह-शाम दोनों वक्त नियमित प्रतिक्रमण करना यह प्रतिक्रमण कल्प है / (9) कृति कर्म- दीक्षा पर्याय से वडील को प्रतिक्रमण आदि यथासमय वदन करना कृतिकर्म कल्प है। . (10) पुरुष ज्येष्ठ कल्प- कोई भी श्रमण (पुरुष) किसी भी श्रमणी (स्त्री) के लिये, ज्येष्ठ ही होता है अर्थात् वंदनीय ही होता है / अत: छोटे-बड़े सभी श्रमण, साध्वी के लिये बड़े ही माने जाते हैं और तदनुसार ही यथासमय विनय, वंदन-व्यवहार किया जाता है और साधु कोई भी दीक्षापर्याय वाला हो वह साध्वी को व्यवहार वंदन नहीं करता है यह पुरुष ज्येष्ठ नामक दसवाँ कल्प है। ये 10 कल्प, प्रथम और अंतिम तीर्थंकर के शासन में पालन करने आवश्यक है अर्थात् उन श्रमणों के ये उन्नत दसों नियम पूर्णरूपेण लागू होते हैं / शेष 22 मध्यम तीर्थंकरों के शासन में एवं महाविदेह क्षेत्र में 6 कल्प वैकल्पिक होते हैं, उनकी व्यवस्था इस प्रकार है१-अचेलकल्प :- स्वमति निर्णय अनुसार वस्त्र पात्र हीनाधिक मात्रा में अल्पमूल्य, बहुमूल्य जैसा भी समय पर मिले, लेना चाहे, ले सकते हैं। रंगीन लेने का कथन अयोग्य है अत: वैसा(रंगीन) अर्थ नहीं करना चाहिये, क्यों कि ऐसा करने में स्वलिंगता में अव्यवस्था होती है. / अन्य धर्म में भो भगवा रंग आदि एक ही प्रकार के वस्त्र होते हैं / 2- औदेशिक :-- अनेक साधु समूह के उद्देश्य से बना आहारं व्यक्तिगत [ 188
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