________________ आगम निबंधमाला कहकर जिनाज्ञा समझकर श्रद्धान के साथ पालन किया जाता है वह उचित ही है ।आज हजारों साध्विओं में कोई भी साध्वी ऐसा सोचने वाली मिलना मुश्किल है कि साधु हमें वंदन करें अर्थात 10 हजार साध्वियों में 100 साध्वी भी ऐसी सोच वाली नहीं मिलेगी। निबंध- 51 अस्वाध्याय संबंधी आगमिक विश्लेषण दिन में तथा रात्रि में स्वाध्याय करना आवश्यक होते हुए भी आगमों में जब जब जहाँ जहाँ स्वाध्याय करने का निषेध किया गया है उस अस्वाध्याय काल का सदा ध्यान रखना चाहिए। निम्न आगमों में अस्वाध्याय स्थानों का वर्णन है- (1) ठाणांग सूत्र अ.-४ में- 4 प्रतिपदाओं और 4 संध्याओं में स्वाध्याय करने का निषेध है। (2) ठाणांग सूत्र अ.-१० में- 10 आकाशीय अस्वाध्याय और 10 औदारिक अस्वाध्याय कहे हैं। (3) निशीथ उद्दे.-१९ में- 4 महा महोत्सव 4 प्रतिपदा और 4 संध्या में स्वाध्याय करने का प्रायश्चित्त कहा है। (4) व्यव. उ.-७ में- स्वशरीर सम्बन्धी अस्वाध्यायों में स्वाध्याय करने का निषेध किया है। इन सभी निषेध स्थानों का संग्रह करने से कुल 32 अस्वाध्याय स्थान होते हैं यथा आकाश सम्बन्धी औदारिक सम्बन्धी महोत्सव एवं प्रतिपदा सम्बन्धी ... संध्याकाल आदि से सम्बन्धित 4 कुल - 32 आकाशीय अस्वाध्याय :- (1) उल्कापात- तारे का टूटना अर्थात् तारा विमान का चलित होना, स्थानान्तरित होना। तारा विमान के तिर्यक् गमन करने पर या देव के विकुर्वणा आदि करने पर आकाश में तारा टूटने जैसा दृश्य दिखाई देता है। यह कभी लम्बी रेखायुक्त गिरते हुए दिखता है, कभी प्रकाशयुक्त गिरते हुए दिखता है इसे ही व्यवहार में तारा टूटना कहा जाता है। सामान्यतः आकाश में तारे टूटते प्रायः सदा - 10 |191