Book Title: Agam Nimbandhmala Part 01
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 190
________________ आगम निबंधमाला प्रश्न- पुरुष ज्येष्ठ नामक चौथे कल्प की एकांतिकता उचित है क्या ? उत्तर- यह आर्य संस्कृति का अनादि नियम है / भारतीय धर्म सिद्धान्तों में कहीं भी श्रमणियाँ श्रमणों के लिये वंदनीय नहीं कही गई है। अत: यह भारतीय संस्कृति का लौकिक व्यवहार है। इसी कारण इस नियम को मध्यम तीर्थंकरों के शासन में भी वैकल्पिक नहीं बताकर आवश्यकीय नियमों में बताया है। अत: पुरुष ज्येष्ठ का व्यवहार करने का अनादि धर्म सिद्धांत ही लौकिक व्यवहार के अनुगत है / ऐसा ही सर्वज्ञों ने उपयुक्त देखा है / इसी सिद्धांत से लोक व्यवहार एवं व्यवस्था सुंदर ढंग से चली आ रही है / इस आगमिक सिद्धांत का मतलब यह नहीं है कि साध्वी संघ का आदर नहीं होता है / आगमानुसार श्रमण-निर्गंथ गहस्थों की किसी प्रकार की सेवा नहीं कर सकते किन्तु श्रमणी की आवश्यकीय स्थिति में वह हर सेवा के लिये तत्पर रहता है / वह सेवा- "गोचरी लाना, संरक्षण करना, उठाकर अन्यत्र पहँचा देना, कहीं गिरते, पडते घबराते वक्त सहारा देना या पानी में साध्वी बहती हो तो तैर कर निकाल देना" आदि सूत्रों में अनेक प्रकार की कही गई है। इन अनेक कार्यों की शास्त्र में आज्ञा है एवं भाव वंदन-नमस्कार में श्रमण भी सभी श्रमणियों को नमस्कार मंत्र में वंदन-नमस्कार करते हैं / पुरुष ज्येष्ठ कल्प मात्र लौकिक व्यवहार के लिये ही तीर्थंकरों द्वारा निर्दिष्ट है, उसकी अवहेलनाअवज्ञा करना श्रद्धालु बुद्धिमानों को योग्य नहीं होता है / व्यवहार की जगह व्यवहार है और निश्चय (भाव) की जगह निश्चय (भाव) है। यही पुरुष ज्येष्ठ कल्प को समझने का सार है ।गाथाओं की रचना पद्धति की विशेषता से कहीं गाथा में पुरिस जेट्ठो कहीं जेट्ठकप्पो शब्द है परंतु दोनों का तात्पर्यार्थ-भावार्थ-विवेचन एक समत है। आर्य संस्कृति में शादी होने पर पुरुष के घर स्त्री आती है किन्तु स्त्री के घर पुरुष नहीं जाता है, इसे ही उपयुक्त समझकर पालन किया जाता ह, किंतु इसे स्त्री के साथ अन्याय नहीं कहा जाता / वैसे ही पुरुष ज्येष्ठ कल्प को स्त्री के साथ अन्याय नहीं | 190

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