________________ आगम निबंधमाला कोई श्रमण- लेना चाहे तो ले सकता है / यदि उसके लिये ही किसी ने बनाया हो वैसा आधाकर्मी नहीं ले सकता है / 3- राजपिंड :- इच्छानुसार यथा प्रसंग ले सकते हैं / 4- मासकल्प :- आवश्यक लगे तो 29 दिन से अधिक भी इच्छानुसार ठहर सकते है / 5- चौमासकल्प :- आवश्यक लगे तो भादवा सुद 5 के पूर्व तक विहार कर सकते हैं / पंचमी के दिन से कार्तिक सुदी 15 तक विहार नहीं करना, इतने नियम का पालन करते हैं / 6- प्रतिक्रमण :- आवश्यक लगे तो सुबह-शाम प्रतिक्रमण कर लेना और आवश्यक न लगे तो नहीं करना / किन्तु पक्खी,चौमासी,संवत्सरी के दिन शाम का प्रतिक्रमण अवश्य करना / इस प्रकार की व्यवस्था वाले ये 6 वैकल्पिक कल्प है। मध्यम तीर्थंकर के साधुओं का इस प्रकार वैकल्पिक- अस्थित कल्प कहा गया है और प्रथम-अतिम तीर्थंकर के श्रमणों के इन दस ही कल्पों का पालन आवश्यक होना स्थित कल्प कहा गया है / __अस्थित कल्प वालों के लिये चार आवश्यक करणीय कल्प ये हैं- 1. शय्यातर पिंड- मकान मालिक का आहारादि नहीं लेना। 2. व्रत- महाव्रत, चातुर्याम एवं अन्य व्रत नियम समिति गप्ति अदि का आवश्यक रूप से पालन करना / 3. कृति कर्म- दीक्षा पर्याय के क्रम से विनय, वंदन-व्यवहार करना आवश्यक होता है / 4. परुष ज्येष्ठ- श्रमणियों के लिये सभी श्रमणों को ज्येष्ठ पूजनीय मान कर विनय, वदन-व्यवहार करना आवश्यक कल्प होता है / श्रमणों को भी पुरुष ज्येष्ठ कल्प का ध्यान रखकर ही साध्विओं के साथ योग्य सन्मान समादर का व्यवहार करना होता है / व्यवहारिक वदन नहीं किया जाता है / ये दशो कल्प यहाँ भगवती सत्र में स्थित कल्प में समाविष्ट किये गये है / मूलपाठ से 10 कल्पों का संदेश-निर्देश सिद्ध होता है / व्याख्याओं से 10 कल्पों का स्पष्टीकरण प्राप्त होता है जो मूलपाठानुगामी विश्लेषण है। उसके बिना स्थितकल्प और अस्थितकल्प का भेद स्पष्ट नहीं हो सकता है ।अतः 10 कल्प सूत्रानुगत एवं सूत्र संमत ही समझना चाहिये / विशेष आवश्यक भाष्य एवं टीका में भी इन दस कल्पों का विस्तृत वर्णन है / [189