Book Title: Agam Nimbandhmala Part 01
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 192
________________ 1 आगम निबंधमाला ही देखे जाते हैं किंतु विशिष्ट प्रकाश करते हुए या प्रकाश रेखा खिंचते हुए तारा टूटे तो ही अस्वाध्याय समझना चाहिए / इसका एक प्रहर तक अस्वाध्याय होता है। (2) दिग्दाह :- स्वाभाविक ही पुद्गल परिणमन से एक या अनेक दिशाओ में आकाश में कोई महानगर के जलने जैसा दृश्य दिखाई द उसे दिग्दाह समझना चाहिए। यह भूमि से कुछ ऊपर दिखाई देता है / इसका एक प्रहर का अस्वाध्याय होता है। (3) गर्जन :- बादलों की ध्वनि / इसका दो प्रहर का अस्वाध्याय होता है। किन्तु आानक्षत्र से स्वातिनक्षत्र तक के वर्षा-नक्षत्रों में अस्वाध्याय नहीं गिना जाता। (4) विद्युत :- बिजली का चमकना / इसका एक प्रहर का अस्वाध्याय होता है। किंतु उपर्युक्त वर्षा के नक्षत्रों में अस्वाध्याय नहीं होता है। (5) निर्घात :-- दारूण (घोर) ध्वनि के साथ बिजली का चमकना। इसे बिजली कड़कना या बिजली गिरना भी कहा जाता है। इसका आठ प्रहर का अस्वाध्याय होता है। (6) यूपक :- शुक्ल पक्ष की एकम, बीज़ और तीज के दिन सूर्यास्त होने एवं चन्द्र उदय होने के समय की मिश्र अवस्था को यूपक कहा जाता है / इन तीन दिनों के प्रथम प्रहर में अस्वाध्याय होता है। इसे बालचन्द्र का अस्वाध्याय भी कहा जाता है। (7) यक्षादीप्त :- आकाश में प्रकाशमान पुद्गलों की अनेक आकृतियों का दृष्टिगोचर होना। इसका एक प्रहर का अस्वाध्याय होता है। (8) धूमिका :- अंधकारयुक्त धुंअर का गिरना / यह जब तक रहे, तब तक इसका अस्वाध्याय काल रहता है। (9) महिका :- अंधकार रहित सामान्य धूअर का गिरना। यह जब तक रहे तब तक इसका भी अस्वाध्याय रहता है। इन दोनों अस्वाध्यायों के समय अप्काय की विराधना से बचने के लिए प्रतिलेखन आदि कायिक- वाचिक कार्य भी नहीं किए जाते / इनके होने का समय / १९रा - - - - -

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