________________ आगम निबंधमाला ऐसी समझ एवं आचरण के पीछे आगम निष्ठा एवं आचार निष्ठा के परिणामों की शिथिलता के साथ साथ शुद्ध विवेक पूर्ण ज्ञान की अनभिज्ञता भी अवश्य होती है / इसका कारण यह है कि जैनागमों में सूचित साध्वाचार के नियम साधारण छद्मस्थों के द्वारा नहीं कहे गये है किन्तु वे नियम सर्वज्ञ जिनेश्वर भगवंतों के अनुभव ज्ञान एवं केवल ज्ञान के प्रभाव से युक्त है / उस पर शुद्ध श्रद्धा एवं गहरे चिन्तन की आवश्यकता है। चिन्तन एवं अनुभव करने पर ज्ञात होता है कि ये अव्यवहारिक से लगने वाले आगम विधान भी महान वैज्ञानिक है / उनके मूल में शरीर स्वास्थ्य एवं संयम स्वास्थ्य दोनों का हेतु रहा हुआ है / / श्रमणों को सदा भूख से कम खाने रूप उणोदरी तप करना आवश्यक है / मंजन नहीं करते हुए भी दांतों को स्वस्थ रखने के लिए कम खाना एवं यदा कदा उपवास आदि तप करना आवश्यक है। ब्रह्मचर्य पालन के लिए एवं इन्द्रिय निग्रह के लिए भी कम खाना और यदा कदा उपवासादि करना आवश्यक है / ब्रह्मचर्य की शुद्धि ही संयम की शुद्धि है। दिन में एक बार ही खाना या दिन भर नहीं खाना यह भी संयम एवं शरीर तथा दांतों के लिए अत्यावश्यक है। पाचन शक्ति एवं लीवर की स्वस्थता के लिए भी अल्प भोजन आवश्यक है / इस प्रकार अल्प भोजन, मंजन त्याग, ब्रह्मचर्य, संतम, स्वास्थ्य आदि एक दूसरे से संलग्न (जुड़े हुए) हैं / बेरोक-टोक के खाते रहना एवं केवल दांत शुद्धि के लिए मंजन कर लेना अपूर्ण विवेक है / ऐसा करने से पाचन शक्ति(लीवर) की खराबी और ब्रह्मचर्य की विकृति का रुकना संभव नहीं है / अत: भिक्षु को बिना मंजन किये भी दांत निरोग रहे उतना ही आहार करने का अपना प्रमुख कर्तव्य समझना चाहिए / सप्ताह मे एक उपवास कर लेने पर दांतो की अत्यधिक सफाई स्वतः हो जाती हैं / ___ आज के वैज्ञानिक भी मंजन किए बिना खाने को स्वास्थ्य के लिए उपयोगी मानने लग गये हैं / | 178