________________ आगम निबंधमाला से कम नौ शास्त्र अर्थ सहित कण्ठस्थ धारण किए हो- 1. आवश्यक सत्र, 2. दशवैकालिक सूत्र, 3. उत्तराध्ययन सूत्र, 4. आचारांग सूत्र, 5. निशीथ सूत्र, 6. सूयगड़ांग सूत्र, 7. दशाश्रुत स्कन्ध सूत्र, 8. बृहत्कल्प सूत्र, 9. व्यवहार सूत्र / (4) ब्रह्मचर्य आदि महाव्रत जिसने खण्डित न किए हो / (5) सबल दोष आदि किन्हीं दोषों से संयम दूषित न किया हो। (6) संयम के नियम-उपनियमों के पालन करने एवं करवाने में कुशल हो / (7) जिन प्रवचन का कुशल ज्ञाता हो / (8) श्रद्धा एवं प्ररूपणा अत्यन्त निर्मल हो तथा आगम तत्त्वों को समझाने में चतुर एवं दक्ष हो (9) प्रभावशाली एवं उपकार बुद्धि वाला हो / -व्यव.उ. ३.सू.५॥ (10) दशाश्रुत स्कन्ध दशा 4 के अनुसार आचार्य आठ सम्पदा से युक्त होना चाहिए / 1. आचार सम्पन्न, 2. श्रुत सम्पन्न, 3. शरीर संपन्न, 4. वचन सम्पन्न, 5. वाचना सम्पन्न, 6. बुद्धि सम्पन्न, 7. स्फुरणा बुद्धि (प्रयोग मति) सम्पन्न, 8. संग्रह परिज्ञा सम्पन्न / इन आठों का सारांश उपरोक्त व्यवहार सूत्रोक्त गुणों में समाविष्ट हो जाता है। (11) परंपरा में 36 गुण कहे जाते हैं उनका भी व्यवहार सूत्र निर्दिष्ट गुणों में समावेश हो जाता है। यथा- (1-5) पाँच आचार पाले, (6-10) पाँच महाव्रत पाले (11-15) पाँच इन्द्रिय जीते, (16-19) चार कषाय टाले (20-28) नौ वाड़ सहित ब्रह्मचर्य पाले, (29-36) पाँच समिति तीन गुप्ति शुद्ध आराधे / पक्ष भाव एवं आग्रह भाव का परित्याग करके उपरोक्त गुण हो उसे ही आचार्य बनना या बनाना चाहिए। . आचार्य बणाओ कैसा? सूत्र में बताया वैसा / निबंध- 27 उपाध्याय की योग्यता एवं कर्तव्य (संक्षिप्त) जिनके समीप अध्ययन किया जाता है उन्हें उपाध्याय कहा जाता है / उपाध्याय पद आगम में आचार्य पद के बराबर ही सम्माननीय कहा गया है / व्यवहार सूत्र, उद्दे.-८ में पाँच अतिशय आचार्य उपाध्याय दोनों के समान कहे गए हैं। अन्य आगम वर्णनों में भी दोनों को प्रायः [123 /