________________ * आगम निबंधमाला उपधि, आहार आदि में यथाशक्ति प्रशस्त योग रखने वाला, अप्रशस्त योगों का परित्याग करने वाला। 3. इन्द्रियों एवं कषायों का निग्रह करने वाला अर्थात् शुभाशुभ पदार्थों में रागद्वेष नहीं करने वाला और कषाय के उदय को विफल कर देने वाला, हिंसा आदि आश्रवों का पूर्ण निरोध करने वाला, अप्रशस्त योग और अप्रशस्त ध्यान अर्थात् आर्त-रौद्र ध्यान का त्याग कर शुभ योग और धर्म, शुक्ल ध्यान में लीन रहने वाला, आत्म परिणामों को सदा विशुद्ध रखने वाला, इहलोकादि आशंसा से रहित, ऐसा गुणनिधि भिक्षु “संयम कुशल'' है। . (3) प्रवचनकुशल :- जो जिनवचनों का ज्ञाता एवं कुशल उपदेष्टा हो वह 'प्रवचनकुशल' है, यथा- सूत्र के अनुसार उसका अर्थ, परमार्थ, अन्वय, व्यतिरेक, युक्त सूत्राशय को, अनेक अतिशय युक्त अर्थों को एवं आश्चर्यकारी अर्थों को जानने वाला, मूल एवं अर्थ की श्रुत परम्परा को भी जानने वाला, प्रमाण नय निक्षेपों से पदार्थो के स्वरूप को समझने वाला, इस प्रकार श्रुत एवं अर्थ के निर्णायक होने से जो श्रुत रूप रत्नों से पूर्ण है तथा जिसने सम्यक् प्रकार से श्रृत को धारण करके उनका पुनरावर्तन किया है, पूर्वापर सम्बन्ध पूर्वक चिंतन किया है, उसके निर्दोष होने का निर्णय किया है और उसके अर्थ को बहुश्रुतों के पास चर्चा-वार्ता आदि से विपुल विशुद्ध धारण किया है, ऐसे गुणों को धारण करने वाला और उक्त अध्ययन से अपना हित करने वाला, अन्य को हितावह उपदेश करने वाला एवं प्रवचन का अवर्णवाद बोलने वालों का निग्रह करने में समर्थ; ऐसा गुण सम्पन्न भिक्षु 'प्रवचन कुशल' है। (4) प्रज्ञप्तिकुशल :- लौकिक शास्त्र, वेद-पुराण एवं स्वसिद्धांत का जिसने सम्यग् विनिश्चय कर लिया है, जो धर्म कथा, अर्थकथा आदि का सम्यक्ज्ञाता है तथा जीव-अजीव के स्वरूप एवं भेदों का, कर्म बंध एवं मोक्ष के कारणों का, चारों गति में गमनागमन करने का एवं उनके कारणों का तथा उनसे उत्पन्न दु:ख-सुख का, इत्यादि का कथन करने में कुशल, पर वादियों के कुदर्शन का सम्यक् समाधान करके उनसे कुदर्शन का त्याग कराने में समर्थ एवं स्व सिद्धान्तों को समझाने में कुशल भिक्षु 'प्रज्ञप्ति कुशल' है। |127