________________ आगम निबंधमाला लगाने वाला / (3) विनय, भाषा आदि का विवेक नहीं रखने वाला, शबल दोषों का सेवन करने वाला / (4) प्रशंसा, प्रतिष्ठा, आदर और भौतिक सुखों की चाहना करने वाला अथवा क्रोधादि से संक्लिष्ट परिणाम रखने वाला। बहुश्रुत-बहुआगमज्ञ :- अनेक सूत्रों एवं उनके अर्थो को जानने वाला बहुश्रुत या बहुआगमज्ञ कहा जाता है। आगमों में इन शब्दों का भिन्नभिन्न अपेक्षा से प्रयोग है। यथा- 1. गंभीरता विचक्षणता एवं बुद्धिमत्ता आदि गुणों से युक्त। 2. जिनमत की चर्चा-वार्ता में निपुण या मुख्य सिद्धांतों का ज्ञाता। 3. अनेक सूत्रों का अभ्यासी / 4. छेदसूत्रों में पारंगत / 5. आचार एवं प्रायश्चित्त विधानों में कुशल / 6. जघन्य मध्यम या उत्कृष्ट बहुश्रुत। . (1) जघन्यबहुश्रुत-आचारांग एवं निशीथ सूत्र को अर्थ सहित कण्ठस्थ धारण करने वाला / (2) मध्यमबहुश्रुत-आचारांग, सूत्रकृतांग और चार छेदसूत्रों को अर्थ सहित कण्ठस्थ धारण करने वाला। (3) उत्कृष्ट बहुश्रुत-दृष्टिवाद' को धारण करने वाला अर्थात् नवपूर्वी से 14 पूर्वी तक। ये सभी बहुश्रुत कहे गये हैं। (4) जो अल्पबुद्धि, अत्यधिक भद्र, अल्प अनुभवी एवं अल्प आगमअभ्यासी होता है वह 'अबहुश्रुत अबहुआगमज्ञ' कहा जाता है तथा कम से कम आचारांग, निशीथ, आवश्यक दशवैकालिक और उत्तराध्ययन सूत्र को अर्थ सहित अध्ययन करके उन्हें कंठस्थ धारण नहीं करने वाला 'अबहुश्रुत अबहु आगमज्ञ' कहा जाता है। निबंध- 29. आचार्य आदि के बिना रहने का निषेध ... व्यवहारसूत्र उद्देशक-३, सूत्र-११, 12 में साधु को आचार्य उपाध्याय बिना एवं साध्वी को आचार्य उपाध्याय प्रवर्तनी बिना रहने का निषेध किया है, इन सूत्रों का शब्दार्थ, भावार्थ, तात्पर्यार्थ एवं इस सूत्र में आये नव, डहर, तरुण शब्दों का स्पष्टार्थ भाष्य में इस प्रकार 129 /