________________ आगम निबंधमाला गये हैं और प्रत्येक संघ ने एक दूसरे से सर्वथा भिन्न व स्वतन्त्र रूप धारण कर लिया है। अतः उक्त एक जैन संघ का औद्देशिक मकान आदि दूसरे संघ वालों के लिये औद्देशिक नहीं है। छोटे क्षेत्र के छोटे श्रावक समाज में सभी जैन संघों के मिश्रित भाव से निर्मित औद्देशिक शय्या आदि सभी संघों के साधुओं के लिये औद्देशिक दोषयुक्त ही समझना चाहिए / [आचारांग सूत्र शय्या अध्ययन के आधार स] निबंध- 40 रात्रि में अग्नि-पानी रहे मकान अकल्पनीय जिस मकान में सारी रात या दिन-रात अग्नि जलती है उस (कुम्भकारशाला या लोहार शाला आदि) में भिक्षु को ठहरना नहीं कल्पता है / यदि ठहरने के स्थान में एवं गमनागमन के मार्ग में अग्नि नहीं जलती हो, किन्तु अन्यत्र कहीं भी(मकान के विभाग में) जलती हो, तो ठहरना कल्पता है / | इसी प्रकार सम्पूर्ण रात्रि या दिन-रात जहाँ दीपक जलता है वह स्थान भी अकल्पनीय है / अग्नि या दीपक युक्त स्थान में ठहरने के दोष : 1. अग्नि के या दीपक के निकट से गमनागमन करने में अग्निकाय के जीवों की विराधना होती है / 2. हवा से कोई उपकरण अग्नि में पडकर जल सकता है। 3. दीपक के कारण आने वाले त्रस जीवों की विराधना होती है / 4. शीत निवारण करने का संकल्प उत्पन्न हो सकता हे / -भाष्य टीका / - आचा. श्रु. 2, अ. 2, उ. 3 में भी अग्नियुक्त स्थान में ठहरने का निषेध है एवं निशीथ उ. 16 में इसका प्रायश्चित्त विधान है। इसे भी सर्व रात्रि की अपेक्षा ही समझना चाहिए / इन आगमस्थलों में अल्पकालीन अग्नि या दीपक का निषेध नहीं किया गया है क्यों कि इसी सूत्र के प्रथम उद्देशक में पुरुष सागारिक उपाश्रय में साधु को एवं स्त्री सागरिक उपाश्रय में साध्वी को ठहरने का विधान है / जहा अग्नि या दीपक जलने की सम्भावना 159