________________ आगम निबंधमाला नौका विहार के कारण- सूत्रों में कहे गये नौका विहार करने का प्रमुख कारण तो कल्पमर्यादा पालन करने का है, साथ ही 1. सेवा में जाना, 2. भिक्षा दुर्लभ होने पर सुलभ भिक्षा वाले क्षेत्रों में जाना, 3. स्थल मार्ग जीवाकुल होने पर, 4. स्थल मार्ग अत्यधिक लम्बा होने पर(इसका अनुपात भाष्य से जानना), 5. स्थल मार्ग में चोर, अनार्य या हिंसक जन्तुओं का भय हो, 6. राजा आदि के द्वारा निषिद्ध क्षेत्र हो तो नौका द्वारा योग्य नदी को पार करने के लिये नाव में बैठना आगम विहित है अथवा इसे सप्रयोजन माना गया है। उनका इस सूत्र से प्रायश्चित्त नहीं आता है। किन्तु अप्काया (जल) आदि की होने वाली विराधना का प्रायश्चित्त बारहवें उद्देशक में कहे अनुसार समझ लेना चाहिए। ठाणांग सूत्र अ. 5 में वर्षाकाल में विहार करने के कुछ कारण कहे हैं उन कारणों से विहार करने पर कभी नौका द्वारा नदी आदि पार करना पड़े तो वह भी सकारण नौका विहार है, अतः उसका प्रस्तुत सूत्रोक्त प्रायश्चित्त नहीं आता है। परंतु नाव देखने के लिये या नौका विहार की इच्छा पूर्ति के लिये ग्रामानुग्राम विचरण करने के लिए या तीर्थ स्थलों में भ्रमण करने हेतु अथवा अकारण या सामान्य कारण से नाव में बैठना, निष्प्रयोजन बैठना कहा जाता है उसी का इस प्रथम सूत्र में प्रायश्चित्त कहा गया है। प्रथम सूत्र के विवेचन मे बताये गये कारणों से जाना आवश्यक होने पर, नौकासंतारिम जल युक्त मार्ग ही होने पर, अन्य कोई उपाय न होने से, नौका विहार का शास्त्रों में विधान है। इसके सिवाय यदि विहार करते हुए कभी मार्ग में जंघासंतारिम जल हो तो उसे पार करने के लिए पैदल जाने की विधि आचा. श्रु.-२, अ.-३, उ.-२ में बताई गई है। .. जंघाबल क्षीण हो जाने पर या अन्य किसी शारीरिक कारण से विहार न हो सके तो भिक्षु एक स्थान पर स्थिरवास रह सकता है किन्तु उसे किसी भी प्रकार का वाहन विहार नहीं कल्पता है। ... सत्रोक्त नौका विहार का विधान प्रवचन प्रभावना के लिए भ्रमण करने हेतु नहीं हैं, क्यों कि निशीथ उ. 12 में तथा दशा. द.२ में 163