________________ आगम निबंधमाला ज्ञातव्य :- यह बत्तीस सूत्रों के मूल पाठ का परिमाण बताया गया है अर्थात् 32 अक्षरों का एक श्लोक होता है और आचारांग सूत्र का मूल पाठ ऐसे 2500 श्लोक जितना है / इसी प्रकार सभी सूत्रों का श्लोक परिमाण कहा गया है / यह परिमाण किसी समय माप करके आंका गया है। इसमें काल क्रम से कुछ हीनाधिक होना भी संभव है / पाठों को संक्षिप्त या विस्तत करने के कारण से भी फर्क हो सकता है / अतः जहाँ उस सूत्र का श्लोक परिमाण बताया जाय वहाँ ऐसा सूचित करना चाहिये कि, इतने श्लोक परिमाण यह सूत्र माना जाता है / इसके अतिरिक्त किसी को किसी भी संख्या में विश्वास न जमे(कन्फयुझन लगे) तो अक्षर गिन कर 32 अक्षर का एक श्लोक समझ कर स्वयं श्लोक संख्या का निर्णय-निर्धारण कर लेना चाहिये। उपधान :- प्रत्येक सूत्र के गुरुगम वाचनी के साथ या बाद में कुछ तप करना आवश्यक होता है। क्यों कि ज्ञान की आराधना में उपधान करना आवश्यक माना गया है / आगमों में साधु और श्रावक दोनों के श्रुत अध्ययन और उसके उपधान का विधान वर्णन आता है। प्रमाण के लिये देखें नंदी सूत्र / यह जो उपधान तप की संख्या बताई गई है वह आयंबिल करने की संख्या है / यदि उपवास करना हो तो 2 आयंबिल = एक उपवास होता है। नोट :- उक्त श्लोक परिमाण एवं उपधान संख्या में कई मतांतर प्राप्त होते हैं / कुछ परिश्रम करके अभिधान राजेन्द्र कोश आदि देखकर तथा कहीं जाँचकर के भी शुद्ध संख्या देने का लक्ष्य रखा गया है। धर्म के चार वाद और उनका समाधान संक्षेप में :- भूमण्डल में चार प्रमुख धर्मवाद है- क्रियावाद, अक्रियावाद, विनयवाद, अज्ञानवाद ।ये चारों एकान्वाद होने से मिथ्या है / वास्तव में अनादि परिचित अभ्यस्त पाप त्याग के लिए धर्म क्रिया आवश्यक है, पूर्ण आश्रव रहित होने के लिए अन्त में योगों से अक्रिय भी होना आवश्यक है, विनय तो साधना का प्राण भूत आवश्यक गुण है अत: ये तीनो सापेक्ष है। अज्ञानवाद तो अन्धों के अन्धे खिवैया होने के समान होने से त्याज्य है अत: तीनो एकांतवादो से बचकर सापेक्ष स्यादवादमय सिद्धांत की आस्था रखे। [171