________________ आगम निबंधमाला हो जाएगा, क्यों कि उनके अनुसार तो तीन वर्ष के बाद आचारांग निशीथ पढ़ाया जाना चाहिए। अतः सत्य अर्थ को स्वीकार कर श्रुत अध्ययन की महत्वपूर्ण प्रणाली को विकसित रखना चाहिए। भिक्षु पडिमा- इसके लिए परंपरा से ऐसा कथन प्रचलित है कि नौ पूर्व ज्ञान धारण करने वाला ही भिक्षु की बारह पडिमा धारण कर सकता है। अंतगड़ सूत्र में वर्णित, अनेक (31) ऐसे श्रमणों ने भिक्षु पडिमा का पालन किया जिन्होंने पूर्वो का ज्ञान हासिल नहीं किया था किंतु उन्होंने केवल ग्यारह अंग शास्त्रों का ही अध्ययन किया था। किसी भी आगम में ऐसा नहीं कहा गया है कि पूर्वज्ञान धारी ही पडिमा धारण करें किन्तु उससे विपरीत वर्णन तो सूत्र में अवश्य है। अतः प्रचलित परंपरा आगम सम्मत नहीं है और आगम कथित भी नहीं है। सार- (1) भिक्षु पड़िमा के लिए पूर्वो का ज्ञान आवश्यक नहीं है और किसी भी आगम में वैसा उल्लेख है भी नहीं। (2) भिक्षु की बारह पडिमा में एकल विहार भी आवश्यक है / अतः सामान्य एकल विहार के लिए भी पूर्व ज्ञान का आग्रह स्पष्ट ही आगम विपरीत प्ररूपण है। (3) तीन वर्ष की दीक्षा के पहले ही आचारांग निशीथ का अध्ययन पूर्ण कर देना चाहिए। .. निबंध- 36 साध्वी की गच्छ में रहते स्वतन्त्र गोचरी व्यवहार सूत्र, उद्देशक-९, सूत्र-४०में चार प्रतिमाओं का वर्णन किया गया है जिनकी आराधना साधु-साध्वी दोनों ही कर सकते हैं / अंतगड़सूत्र के आठवें वर्ग में सुकृष्णा आर्या द्वारा इन भिक्षु प्रतिमाओं की आराधना करने का वर्णन है। इन प्रतिमाओं में साध्वी भी स्वयं अपनी गोचरी लाती है। जिसमें निधारित दिनों तक भिक्षा दत्ति की मर्यादा का पालन किया जाता है। इन प्रतिमाओं में निर्धारित दत्तियों से कम दत्तियाँ ग्रहण की जा सकती है या अनशन रूप तपस्या भी की जा सकत है। किन्तु किसी भी कारण से मर्यादा से अधिक दत्ति ग्रहण नहीं की जा सकती है। इन प्रतिमाओं में उपवास [ १५रा - - - - - Narenu - e