________________ आगम निबंधमाला शास्त्र अध्ययन तीन वर्ष के पहले- व्यवहार सूत्र उद्देशक दस में शास्त्र अध्ययन का दीक्षा पर्याय से वर्णन किया गया है उसका सही अर्थ है कि सूत्र निर्दिष्ट वर्षों तक तो योग्य साधु-साध्वी को सूत्र कथित शास्त्र का अध्ययन कर ही लेना चाहिए या करा देना चाहिए। 'सूत्र निर्दिष्ट वर्षों के बाद ही उस सूत्र का अध्ययन करना या कराना' ऐसा अर्थ करना केवल मति-भ्रम ही है जिससे अनेक आगम पाठों की संगति भी नहीं होती है और अंतगड़ सूत्र में आये शास्त्र अध्ययन के वर्णन से भी विरोध होता है। सूत्र का सही अर्थ न करके मतिभ्रम से गलत अर्थ करना और फिर आगम विहारी के समाधान से संतोष करना दोहरी भूल है। वैसा करने से कथानकों का समाधान मान भी लिया जाय तो भी छेद सूत्रों के अनेक विधानों का कुछ भी समन्वय समाधान नहीं हो सकेगा। अतः इस सूत्र में कहा गया ग्यारह अंग और 14 पूर्व के अध्ययन वर्णन का व्यवहार सूत्र के विधान के सही अर्थ से कोई विरोध नहीं है। __व्यवहार सूत्र उद्देशक तीन के अनुसार तीन वर्ष की दीक्षा वाला श्रमण-श्रंमणी पर्याय-संपन्न होने से मुखिया बनकर विचरण कर सकता है तथा जिनके आचारांग-निशीथ सूत्र का अध्ययन पूर्ण नहीं हुआ है, वैसा साधु-साध्वी मुखिया बन कर विचरण नहीं कर सकता है और उद्देशक चार के अनुसार यदि उनका मुखिया काल धर्म को प्राप्त हो जाय तो उन्हें चातुर्मास में भी विहार करना आवश्यक हो जाता है। अतः यह स्पष्ट है कि तीन वर्ष की दीक्षा वाला और आचारांग निशीथ का अध्ययन कर उसे कंठस्थ धारण करने वाला ही मुखिया बनकर विचरण कर सकता है। इससे भी यह सिद्ध हुआ कि तीन वर्ष की दीक्षा तक कम से कम आचारांग निशीथ का अध्ययन कर लेना चाहिए, ऐसा अर्थ करना ही आगमनुकूल है। . व्यवहार सूत्र के तीसरे उद्देशक में तीन वर्ष की दीक्षा वाले को उपाध्याय बनाने का स्पष्ट विधान है। वहाँ यह भी विधान है कि वह उपाध्याय बनने वाला साधु बहुश्रुत हो और कम से कम आचारांग निशीथ को कंठस्थ अर्थ सहित धारण करने वाला हो। यदि मंति भ्रम से किए जाने वाले अर्थ को सही माना जाय तो यह सूत्र विधान निरर्थक 151