________________ ___ आगम निबंधमाला साधक आचरांग सूत्र आदि आचारसंहिता का पूर्ण अध्ययन कर चुका है, गीतार्थ है, निशीथ सूत्र आदि छेद सूत्रों के सूक्ष्मतम मर्म का भी ज्ञाता है, उत्सर्ग-अपवाद पदों का अध्ययन ही नहीं अपितु स्पष्ट अनुभव रखता है, वही अपवाद के स्वीकार या परिहार के संबंध में ठीक-ठीक निर्णय दे सकता है। अतः सभी अपवादिक विधान करने वाले सूत्रों में कही गई प्रवृत्तियों को करने में इस उत्सर्ग-अपवाद के स्वरूप संबंधी वर्णन को ध्यान में रखना चाहिए। निबंध- 34 साधु-साध्वी की परस्पर सेवा आलोचना (व्यवहारसूत्र, उद्दे.-५, सूत्र : 19, 20) बृहत्कल्पसूत्र के चौथे उद्देशक में बारह सांभोगिक व्यवहारों का वर्णन करते हुए औत्सर्गिक विधि से साध्वियों के साथ साधु को छः सांभोगिक व्यवहार रखना कहा : गया है। तदनुसार साध्वियों के साथ एक मांडलिक आहार का व्यवहार नहीं होता है तथा आगाढ़ कारण के बिना उनके साथं आहारादि का लेन-देन भी नहीं होता है तो भी वे साधु-साध्वी एक आचार्य की आज्ञा में होने से और एक गच्छ वाले होने से सांभोगिक कहे जाते हैं। ___ ऐसे सांभोगिक साधु-साध्वियों के लिए भी आलोचना, प्रतिक्रमण, प्रायश्चित्त आदि परस्पर में करना निषिद्ध है अर्थात् साधु अपने दोषों की आलोचना प्रायश्चित्त आचार्य उपाध्याय, स्थविर आदि के पास ही कर और साध्वियाँ अपनी आलोचना प्रायश्चित्त प्रवर्तिनी, स्थविरा आदि योग्य श्रमणियों के पास ही करे, यह विधि मार्ग या उत्सर्ग मार्ग है। ___अपवादमार्ग के अनुसार किसी गण में साधु या साध्वियों में कभी कोई आलोचना-श्रवण के योग्य न हो या प्रायश्चित्त देने योग्य न हो तब परिस्थितिवश साधु स्वगच्छीय साध्वी के पास आलोचना प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त कर सकता है और साध्वी स्वगच्छीय साधु के पास आलोचना आदि कर सकती है / __ इस विधान से यह स्पष्ट है कि सामान्यतया एक गच्छ के साधु साध्वियों को भी परस्पर आलोचना प्रायश्चित्त नहीं करना चाहिए। 148