________________ आगम निबंधमाला टीका सहित देखें। (ये दोनों गाथाएँ अगले पृष्टों में दी गई है।) . इन स्थलों में 6 मास से अधिक दीक्षा कट करने के प्रायश्चित्त का निषेध है / साथ ही दीक्षा कट का प्रायश्चित्त कैसी योग्यता वाले को दिया जाता है और किसे नहीं दिया जाता है यह स्पष्ट किया गया है फिर भी अनेक आचार्य और गच्छ प्रमुख बिना विचारे हर किसी को ढर्रे मात्र से दीक्षा कट का प्रायश्चित्त दे देते हैं वह भी छः मास का उल्लंघन करके वर्ष, दो वर्ष यावत् दस वर्ष का प्रायश्चित्त घोषित कर देते हैं, वह सर्वथा अनुचित एवं आगम निरपेक्ष है। सार- छेद सूत्रों के अर्थ परमार्थ का ज्ञाता(विशेषज्ञ)ही बहुश्रुत (गीतार्थ) कहा जाता है और वैसा बहुश्रुत ही गुरू या आचार्य अथवा गच्छ प्रमुख एवं पदवीधर बनाया जाना चाहिये। अबहुश्रुतों को गुरू आदि बनाना आगम आज्ञा की अवहेलना करना है। आगम विपरीत प्रायश्चित्त देने वाले स्वयं गुरुचौमासी प्रायश्चित्त के भागी बनते हैं / देखें-निशीथ उद्दे. 10, सूत्र : 15-18 आगम में यक्षाविष्ट पागल आदि अनेक प्रकार के रूग्ण भिक्षुओं की सेवा करना परम कर्तव्य बताया गया है और उन्हें गच्छ से निकालने का निषेध किया गया है। उनकी सेवा भी अन्य सेवा से विशेष प्रकार की होती है। पागल एवं यक्षाविष्ट व्यक्ति के साथ अनेक प्रकार के व्यवहार विवेक पूर्वक किये जाते हैं। . ऐसी सभी स्थितियों से युक्त सेवा करने वाले को आगम में लघु से लघु प्रायश्चित्त देने का विधान है। अन्य भी सभी प्रकार की सेवा करने वाले साधु को एवं सेवा में जाने वाले साधु को छोटा से छोटा प्रायश्चित्त देने का आगमों में विधान है। -- स्पष्ट आगम प्रमाण उपलब्ध होते हुए भी आज के प्रायश्चित्त दाता निःस्वार्थ भाव से सेवा करने वाले को छोटे से छोटा प्रायश्चित्त देने की आज्ञा का उल्लंघन कर गुरू प्रायश्चित्त या उससे भी आगे बढ़ कर छेद प्रायश्चित्त दे देते हैं यह सर्वथा अनुचित्त है और शास्त्र मर्यादा का उल्लंघन है। ___ व्यवहार सूत्र में प्रायश्चित्त वहन करने वाले परिहारिक साधु को सेवा में भेजने का वर्णन है। वह यदि मार्ग में स्वेच्छा से अपनी कोई कल्प मर्यादा का उल्लंघन करले और आचार्य को मालूम पड़ जाय [142