________________ आगम निबंधमाला सकता है ? गच्छ में योग्य साधु के होते हुए भी जो आचार्य उपाध्याय न बनावे तो वह उनका आगम विपरीत आचरण और प्ररूपण है क्या? क्या वे भगवान तीर्थंकर से भी अपने को ज्यादा समझने वाले होते हैं? इन सब प्रश्नों का समाधान उपर निबंध में दिया जा चुका है। निबंध- 30 आचार्य आदि पद देने-हटाने का विवेक व्यवहारसूत्र के तीसरे उद्देशक में आचार्य, उपाध्याय पद योग्य भिक्षु के गुणों का विस्तृत कथन किया गया है। उद्देशक-४ में रुग्ण आचार्य, उपाध्याय अपना अंतिम समय समीप जान कर आचार्य, उपाध्याय पद के लिए किसी साधु का नाम निर्देश करे तो उस समय स्थविरों का क्या कर्तव्य है इसका स्पष्टीकरण किया गया है। रुग्ण आचार्य ने आचार्य बनाने के लिए जिसके नाम का निर्देश किया है वह योग्य भी हो सकता है और अयोग्य भी हो सकता है क्यों कि उनका कथन रुग्ण होने के कारण या मोह भाव के कारण संकुचित दृष्टिकोण वाला भी हो सकता है। __ अतः उनके काल धर्म प्राप्त हो जाने पर पद किसको देना इसक निर्णय की जिम्मेदारी गच्छ के शेष साधुओं की कही गई है। जिसका भाव यह है कि यदि आचार्य निर्दिष्ट भिक्षु तीसरे उद्देशक में कही गई सभी योग्यताओं से युक्त है तो उसे ही उस पद पर नियुक्त करना चाहिये, दूसरा कोई विकल्प आवश्यक नहीं है। . यदि वह श्रमण शास्त्रोक्त योग्यता से सम्पन्न नहीं है और अन्य योग्य है तो आचार्य निर्दिष्ट भिक्षु को पद देना अनिवार्य न समझ कर उस अन्य योग्य भिक्षु को ही पद पर नियुक्त करना चाहिए। यदि अन्य कोई भी योग्य नहीं है तो आचार्य निर्दिष्ट भिक्षु योग्य हो अथवा योग्य न हो उसे ही आचार्य पद पर नियुक्त करना चाहिए। यदि अन्य अनेक भिक्षु भी पद के योग्य हैं और वे आचार्य निर्दिष्ट भिक्षु से रत्नाधिक भी हैं किन्तु यदि आचार्य निर्दिष्ट भिक्षु योग्य है तो उसे ही आचाय बनाना चाहिए।