________________ आगम निबंधमाला . है उसके संदर्भ में यह समझना चाहिए कि यहाँ स्थविर शब्द से आचार्य उपाध्याय प्रवर्तक आदि सभी आज्ञा देने वाले अधिकारी सूचित किये गये हैं। क्यों कि स्थविर शब्द अत्यन्त विशाल है। इसमें सभी पदवीधर और अधिकारीगण भिक्षुओं का समावेश हो जाता है। आगमों में गणधर गौतम तथा सुधर्मास्वामी के लिए एवं तीर्थंकरों के लिए भी 'थेरे = स्थविर' शब्द का प्रयोग है। अतः इस विधान का आशय यह है कि गण धारण के लिए गच्छ के किसी भी अधिकारी भिक्षु की आज्ञा लेना आवश्यक है एवं स्वयं का श्रुतसंपदा आदि से संपन्न होना भी आवश्यक है। यदि कोई भिक्षु उत्कट इच्छा के कारण आज्ञा लिये बिना या स्वीकृति नहीं मिलने पर भी अपने शिष्यों को या अन्य अपनी निश्रा में अध्ययन आदि के लिए रहे हुए साधुओं को लेकर विचरण करता है तो वह प्रायश्चित्त का पात्र होता है। उसके साथ शिष्य रूप रहने वाले या अध्ययन आदि किसी भी कारण से उसकी निश्रा में रहने वाले साधु उसकी आज्ञा का पालन करते हुए उसके साथ रहते हैं, वे प्रायश्चित्त के पात्र नहीं होते हैं। यह भी द्वितीय सूत्र में स्पष्ट किया गया है। आज्ञा के बिना गणधारण करने वाले भिक्षु के लिए प्रायश्चित्त का विधान करते हुए सूत्र में कहा गया है कि 'से संतरा छेए वा परिहारे वा' इसका अर्थ करते हुए व्याख्याकार ने यह स्पष्ट किया है कि वह भिक्षु अपने उस अपराध के कारण यथायोग्य छेद (पाँच दिन आदि) प्रायश्चित्त को अथवा मासिक आदि परिहार तप या सामान्य तप रूप प्रायश्चित्त को प्राप्त होता है। अर्थात् आलोचना करने पर या आलोचना न करने पर भी अनुशासन व्यवस्था हेतु उसे यह सूत्रोक्त प्रायश्चित्त दिया जाता है। सूत्र में यह विधान भिक्षु के लिए किया गया है। इसी प्रकार साध्वी के लिए भी उपरोक्त संपूर्ण विधान-विवेचन समझ लेना चाहिए / उसे विचरण करने के लिए स्थविरा या प्रवर्तिनी की आज्ञा लेनी चाहिए / निबंध- 26 आचार्य की योग्यता का संक्षिप्त परिचय (1) कम से कम पाँच वर्ष की दीक्षा पर्याय हो। (2) बहुश्रुत (छेदसूत्रों में पारंगत) और बहुआगमज्ञ(अनेक शास्त्रों का अभ्यासी) हो। (3) कम moneymsama s u merom