________________ आगम निबंधमाला हुआ संयम की आराधना कराता है, वह शीघ्र ही मोक्ष गति को प्राप्त करता है। भगवती सूत्र श. 5 उ. 6 में कहा है कि सम्यक् प्रकार से गण का परिपालन करने वाले आचार्य, उपाध्याय उसी भव में या दूसरे भव में अथवा तीसरे भव में अवश्य मुक्ति प्राप्त करते हैं। आचार्य के स्थान पर अन्य कोई भी उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर, गुरु आदि गच्छ के प्रमुख अनुशास्ता हो उन सभी को ये सत्रोक्त कर्तव्यों का पालन और गुणों को धारण करना आवश्यक समझना चाहिए। . निबंध- 21 आचार्य एवं शिष्यों के परस्पर कर्तव्य आचार्य के कर्तव्य :- (1) शिष्यों को संयम सम्बन्धी और त्याग-तप सम्बन्धी समाचारी का ज्ञान कराना एवं उसके पालन में अभ्यस्त करना। समूह में रहने की या अकेले रहने की विधियों एवं आत्म समाधि के तरीकों का ज्ञान एवं अभ्यास कराना / (2) आगमों का क्रम से अध्ययन करवाना, अर्थ ज्ञान करवा कर उससे किस तरह हिताहित होता है यह समझाना एवं उससे पूर्ण आत्मकल्याण साधने का बोध देते हुए परिपूर्ण वाचना देना। (3) शिष्यों की श्रद्धा को पूर्णरूप से दृढ़ बनाना और ज्ञान में एवं गुणों में अपने समान बनाने का प्रयत्न करना। (4) शिष्यों में उत्पन्न दोष-कषाय, कलह, आकांक्षाओं का उचित उपायों द्वारा समन करना। ऐसा करते हुए भी अपने खुद के संयम गुणों की एवं आत्म समाधि की पूर्ण रूपेण सुरक्षा एवं वृद्धि बनाये रखना। . शिष्यों के कर्तव्य :- (1) आवश्यक उपकरणों की प्राप्ति सुरक्षा एवं विभाजन में चतुर होना। (2) सदा आचार्य गुरुजनों के अनुकूल प्रवर्तन करना। (3) गण के यश की वृद्धि, अपयश का निवारण ए वं रत्नाधिकों का यथायोग्य आदर भाव और सेवा करने में सिद्धहस्त होना / (4) शिष्य वृद्धि, उनके संरक्षण-शिक्षण में सहयोगी होना। रोगी साधुओं की यथायोग्य सार-सम्भाल करना एवं मध्यस्थ भाव से साधुओं की शांति बनाए रखने में निपुण होना / दशा.द.४ / [113