________________ आगम निबंधमाला (6) शिष्य भी विभिन्न तर्क, बुद्धि, रुचि, आचार वाले होते हैं। अतः आचार्य का सभी के संरक्षण तथा संवर्धन के योग्य 'बहुमुखी बुद्धि सम्पन्न' होना आवश्यक है। (7) विशाल समुदाय में अनेक परिस्थितियाँ तथा उलझनें उपस्थित होती रहती हैं। उनका यथासमय शीघ्र समुचित समाधान करने के लिये मतिसंपदा के साथ ही प्रयोगमति सम्पदा का होना भी आवश्यक है। अन्य अनेक मतमतांतरों के सैद्धान्तिक विवाद या शास्त्रार्थ के प्रसंग उपस्थित होने पर योग्य रीति से उनका प्रतिकार करना होता है। ऐसे समय में तर्क बुद्धि और श्रुत का प्रयोग, धर्म की अत्यधिक प्रभावना करने वाला होता है। (8) उपरोक्त गुणों से धर्म की प्रभावना होने पर सर्वत्र यश की वृद्धि होने से शिष्य परिवार की वृद्धि होना स्वाभाविक है। विशाल शिष्यसमुदाय के संयम की यथाविधि अराधना हो, इसके लिये विचरण क्षेत्र, उपधि, आहारादि की सुलभता तथा अध्ययन, सेवा, विनय व्यवहार की 'समुचित व्यवस्था' और संयम समाचारी के पालन की देख-रेख, सारणावारणा का सुव्यवस्थित होना भी अत्यावश्यक है / यह संग्रह परिज्ञा संपदा में समाविष्ट है / / इस प्रकार आठों ही सम्पदाएँ परस्पर एक दूसरे की पूरक तथा स्वतः महत्त्वशील हैं। ऐसे गुणों से सम्पन्न आचार्य का होना प्रत्येक गण (गच्छ-समुदाय) के लिये अनिवार्य है। जैसे कुशल नाविक के बिना नौका के यात्रियों को समुद्र में पूर्ण सुरक्षा की आशा रखना अनुचित है, वैसे ही आठ सम्पदाओं से सम्पन्न आचार्य के अभाव में संयम साधकों की साधना सदा विराधना रहित रहे या उसकी सर्वांगीण शुद्ध आराधना हो यह भी सम्भव नहीं है। प्रत्येक श्रमण का विवेक :- प्रत्येक साधक का भी यह कर्तव्य है कि वह जब तक पूर्ण योग्य और गीतार्थ-बहुश्रुत न बन जाय तब तक उपरोक्त योग्यता से सम्पन्न आचार्य के नेतृत्व में ही अपना संयमी जीवन सुरक्षित रहे, इसके लिए उसे सदा प्रयत्नशील रहना चाहिए। किसी कर्म संयोगवश श्रेष्ठ योग्यता से असंपन्न गुरु आचार्य या गच्छ का सहवास प्राप्त हो जाय और उसे अपनी संयम साधना एवं आत्म