________________ आगम निबंधमाला समुचित वाचना देकर श्रुतसम्पन्न बनाना / 3. उस सूत्रार्थ के ज्ञान से तप संयम की वृद्धि के उपायों का ज्ञान कराना अर्थात् शास्त्रज्ञान को जीवन में क्रियान्वित करवाना अथवा समय-समय पर उन्हें हित शिक्षा देना। 4. सूत्र रुचि वाले शिष्यों को प्रमाणनय की चर्चा द्वारा अर्थ परमार्थ समझाना / छेद सूत्र आदि सभी आगमों की क्रमशः वाचना देना। वाचना के समय आने वाले विघ्नों का शमन कर श्रुत वाचना पूर्ण कराना। यह आचार्य का चार प्रकार का 'श्रुतविनय' है। (3) विक्षेपणाविनय :- 1. जो धर्म स्वरूप से अनभिज्ञ है, उन्हें धर्म का स्वरूप समझाना। 2. जो अनगारधर्म के प्रति उत्सुक नहीं हैं उन्हें अनगारधर्म स्वीकार करने के लिए उत्साहित करना / अथवा 1. यथार्थ संयम धर्म समझाना। 2. संयम धर्म के यथार्थ ज्ञाता को ज्ञानादि में अपने समान बनाना। 3. किसी अप्रिय प्रसंग से किसी भिक्षु की संयम धर्म से अरुचि हो जाय तो उसे विवेक पूर्वक पुनः स्थिर करना। 4. श्रद्धालु शिष्यों के संयमधर्म की पूर्ण आराधना कराने में सदैव तत्पर रहना। यह आचार्य का चार प्रकार का 'विक्षेपणाविनय' है। (4) दोषनिर्घातनाविनय :- शिष्यों की समुचित व्यवस्था करते हुए भी विशाल समूह में साधना करने वाले कोई साधक छद्मस्थ अवस्था के कारण कषायों के वशीभूत होकर किसी दोष विशेष के पात्र हो सकते हैं। 1. उनके क्रोधादि अवस्थाओं का सम्यक् प्रकार से छेदन करना। 2. राग-द्वेषात्मक परिणति का तटस्थतापूर्वक निवारण करना। 3. अनेक प्रकार की आकांक्षाओं के अधीन शिष्यों की आकांक्षाओं को उचित उपायों से दूर करना। 4. इन विभिन्न दोषों का निवारण कर संयम में सुदृढ़ करना अथवा शिष्यों के उक्त दोषों का निवारण करते हए भी अपनी आत्मा को संयमगणो में परिपूर्ण बनाये रखना। इस प्रकार शिष्यसमुदाय में उत्पन्न दोषों को दूर करना, यह आचार्य का चार प्रकार का 'दोषनिर्घातनाविनय' है। सम्पूर्ण ऐश्वर्य सम्पन्न जो राजा, प्रजा का प्रतिपालक होता है, वही यशकीर्ति को प्राप्त कर सुखी होता है। वैसे ही जो आठ संपदा युक्त आचार्य शिष्य-समुदाय की विवेक पूर्वक परिपालना करता [11] Posmananews - -