________________ आगम निबंधमाला भावार्थ :- भिक्षु माता, पिता, गुरु, राजा, देवता आदि कोई भी असंयति को वंदन नहीं करे // 1 // बुद्धिमान मुनि सुसमाधिवंत, संयत, पाँच समिति तीन गुप्ति से युक्त तथा असंयम से दूर रहने वाले श्रमणों को वन्दना करे // 2 // दसण णाण चरित्ते, तव विणए निच्च काल पासत्था / एए अवंदणिज्जा, जे जसघाई पवयणस्स // 6 // भावार्थ :- जो ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और विनय की अपेक्षा सदैव पार्श्वस्थ आदि भाव में ही रहते हैं साथ ही जो जिन शासन का अपयश करने वाले हैं, वे भिक्षु अवन्दनीय हैं / अपवाद से वंदनीय :- वंदण विसेस कारणा इमे परियाय परिस पुरिसं, खेत्त कालं च आगमं जाउं / कारणजाए जाते, जहारिहं जस्स जं जोग्गं // 4372 // वायाए णमोक्कारो, हत्थुस्सेहो य सीसनमण च / संपुच्छणं, अच्छणं च, छोभ-वंदणं, वंदणं वा // 4373 // एयाई अकुव्वंतो, जहारिहं अरिह देसिए मग्गे / न भवइ पवयण भत्ति, अभत्तिमंतादिया दोसा // 4374 // भावार्थ :- दीक्षा पर्याय, परिषद, पुरुष, क्षेत्र, काल, आगम ज्ञान आदि कोई भी कारण को जानकर चारित्रगुण से रहित को भी यथायोग्य (1) मत्थएण वदामि बोलना, (2) हाथ जोड़ना, (3) मस्तक झुकाना, (4) सुखसाता पूछना (5) उनके पास खड़े रहना (6) संक्षिप्त वंदन (7) परिपूर्ण वंदन आदि क्रमिक यथावश्यक विनय व्यवहार करना चाहिए / क्यों कि अरिहन्त भगवान के शासन में रहे हुए भिक्षु को उपचार से भी यथायोग्य व्यवहार न करने पर जिन शासन की भक्ति नहीं होती है, किन्तु अभक्ति ही होती है, जिससे लोक निंदा आदि अन्य अनेक दोष उत्पन्न होते हैं / __पासत्था आदि में निम्न गुण हो सकते हैं- बुद्धि, नम्रता, दान रुचि, अति-भक्ति, व्यवहारशील, सुंदरभाषी, वक्ता, प्रिय भाषी, ज्ञानी, पंडित, बहुश्रुत, जिनशासन प्रभावक, विख्यात कीर्ति, अध्ययन [88 - - - - -