________________ आगम निबंधमाला उत्तर- ये कार्य आरंभ जनक व अयतना कारक है / उपरोक्त घड़ी चलने की अयतना से भी बढ़कर है / त्रस जीवों के विराधना की भी अत्यधिक संभावना रहती है तथा कूटना, पीसना आदि यह गृहस्थ प्रवृतिएँ हैं / इन प्रवृत्तियों को साधु के लिये अयोग्य एवं अकल्पनीय आचरण समझना चाहिए / साधु लिंग में ये प्रवत्तियां अपवाद से करना भी शोभनीय नहीं है / अत: साधु के द्वारा ऐसी प्रवत्तियों का करना विवेकहीनता का द्योतक है / प्रश्न 11. खुले मुख बोलना आगम विपरीत आचरणं है ? शिथिलाचार है ? उत्तर- भगवती सूत्र शं. 16 उ. 2 में वस्त्र से मुख ढांके बिना बोलने पर सावध भाषा अर्थात् सावध प्रवत्ति कही गई है / अतः लापरवाही से खुले मुख बोलते रहना और प्रायश्चित्त नहीं लेना आगम विपरीत . आचरण है एवं शिथिलचार है / . प्रश्न-१२. जमीकंद (अनंतकाय) का खाना व विगय महाविगय का सेवन करना तथा बादाम पिस्ता आदि मेवे खाना आगम विपरीत आचरण है ? व शिथिलचार है ? उत्तर- अनंत काय, विगय युक्त पदार्थ, महाविगय और मेवे आदि का सेवन प्रायः प्रमाद वद्धि, इन्द्रियों की चंचलता व प्रकृति विकार आदि दोषों का वर्धक होता है / अतः साधु को साधारणतया इन पदार्थों का वर्जन करना ही हितकर होता है। फिर भी यह अवश्य स्मति में रखना चाहिए इनका एकातिक निषेध आगमकार को अपेक्षित नहीं है / प्रमाण के लिये देखें - अनंतकाय- आचारांग 2.1.8 में अशस्त्र परिणत अनंत काय को ग्रहण करने की मना की गई है / आचारांग 2.7.2 में अचित अनंत काय ग्रहण करने का कथन है / दशवैकालिक अ. 3 में सचित कंदमूल ग्रहण करना अनाचार कहा गया है / विगय-महाविगय- ठाणांग सूत्र में 5 विगय, 4 महाविमय और कुल 9 विगय होने का कथन है / जिसमें दो महाविगय सेवन को नरक आयुबंध का कारण आगम में कहा गया होने से शेष दो महा