________________ आगम निबंधमाला 10. एक साधु-साध्वी को चार पात्र और 72 या 96 हाथ वस्त्र से अधिक नहीं रखना / (आगम में कोई संख्या सूचित नहीं की गई है।) 11. चौमासी संवत्सरी को दो प्रतिक्रमण करना या पंच प्रतिक्रमण करना, 20 या 40 लोगस्स का कायोत्सर्ग करना / (अमुक संप्र.) 12. स्वयं पत्र नहीं लिखना, गहस्थ से लिखवाने पर भी प्रायश्चित्त लेना अथवा पोस्टकार्ड आदि नहीं रखना / (प्रा.स.) [वर्षा में या कीड़ियों आदि में गहस्थ के आने जाने में अधिक दोष लगता है और अपवाद में कम दोष लगे यही क्रमिक विवेक रखना चाहिए। जिसके द्वारा लोग आमतौर से लेन देन करते हैं, वे सिक्के आदि धन कहलाते हैं / धन व सोना चांदी रखने की मनाई दशवै. अ. 10 गा.६ में है। तथा उत्तरा. अ. 35 गा. 13 में सोने चांदी की चाहना मात्र का भी निषेध है। टिकिट पोस्टकार्ड आदि के लिए निषेध नहीं है। 13. अनेक साध्वियाँ या स्त्रियाँ हो तो भी पुरुष की उपस्थिति बिना साधु को नहीं बैठना / ऐसे ही साध्वी के लिए भी समझ लेना। (प्रा.स.) 14. रजोहरण या प्रमार्जनिका आदि को सम्पूर्ण खोलकर ही प्रतिलेखन करना / (प्रा.सं.) 15. गहस्थ ताला खोलकर या चूलिया वाले दरवाजे खोलकर आहार दे तो नहीं लेना / (प्रा.सं.) 16. ग्रामान्तर से दर्शनार्थ आये श्रावकों से निर्दोष आहारादि भी नहीं लेना / (ज्ञान.) 17. डोरी पर कपड़े नहीं सुखाना / परदा नहीं बांधना / (ज्ञान.) 18. प्रवचन सभा में साधु के समक्ष साध्वी को पाट पर नहीं बैठना। (प्रा.स.) 19. दाता के द्वारा घुटने के ऊपर से कोई पदार्थ गिर जाए तो उस घर को "असूझता" कहना या अन्य किसी भी विराधना से किसी के घर को "असूझता" करना / (प्रा.सं.) 20. चद्दर बांधे बिना उपाश्रय से बाहर नहीं जाना अथवा चद्दर चोलपट्टा गांठ देकर नहीं बांधना / (स्था.प्रा.सं.) 21. धातु की कोई वस्तु अपने पास नहीं रखना / चश्मा आदि में - - - - - 102]