________________ आगम निबंधमाला विगय और 5 विगय रहती है जिसमें 1. मक्खन ग्रहण विषयक वर्णन कई आगम स्थलों में(छेद सूत्रों में) आता है / 2. दूध दही आदि विगय ग्रहण बारंबार करते हुए जो बाह्य व आभ्यंतर तप में लीन नहीं रहता उसे पापी श्रमण कहा है- उत्तरा. 17, (3) तीर्थंकरों के पारणे में "खीर" "इक्ष रस" आदि ग्रहण करने का वर्णन आता है। 4. कृष्ण जी के 6 भाई मुनियों के पारणे में "सिंह केशरी मोदक" ग्रहण करने का वर्णन आता है / 5. तपों की चार परिपाटी करने वाली दीक्षित राणियों की प्रथम परिपाटी में विगय युक्त आहारग्रहण करने का वर्णन अंतगड़ सूत्र में आता है / 6. आचार्य उपाध्याय की विशिष्ट आज्ञा पूर्वक विगय ग्रहण की जा सकती है, बिना विशिष्ट आज्ञा के विगय ग्रहण करने पर निशीथ सूत्र उद्देशा 4 में प्रायश्चित्त कहा है। मेवे- अनेक सूत्रों में खाइमं साइमं ग्रहण करने के विधायक पाठ भी है। जिसमें "खाइमं" शब्द में "मेवे" (बादाम आदि) का ग्रहण होता है। अत: एकान्त निषेध की प्ररूपणा करना तो आगम सम्मत नहीं समझना चाहिए / फिर भी इन पदार्थों को यथाशक्य छोड़ना ही संयम साधना का आदर्श आचार है। अत: साधारणतया इन पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए / एकातिक निषेध आगम में नहीं होने से इनके सेवन को आगम विपरीत आचरण या शिथिलचार है इस रूप में नहीं कहा जा सकता / तथापि रसलोलुप वत्ति, रसाशक्ति, व अमर्यादा से इन पदार्थों का सेवन करना संयम व समाधि का बाधक होता है, यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए / तथा एषणा के दोषो को टालने का पूर्ण विवेक नहीं रखने पर एवं निमंत्रण या तैयारी पूर्वक रखे हों उन्हें लेने पर; यह आगम विपरीत आचरण व शिथिलचार कहलायेगा। प्रश्न- 13 फोटू खिंचवाना, फंड(चंदा) इकट्ठा करना, फ्लश का उपयोग करना आदि प्रवृत्तियाँ शिथिलाचार है ? उत्तर- संयम व शरीर के प्रयोजन से अपवाद रूप दोष लगाने की प्रवृत्ति में शिथिलाचार नहीं भी होता है / किन्तु प्रश्न गत प्रवृत्तियाँ तो साधु के आचरण योग्य है ही नहीं, अत: स्पष्टत: शिथिलाचार है और भी महाव्रतों व प्रसिद्ध आचारो का अपने संयम निरपेक्ष शिथिल विचारों से भंग करना स्पष्ट रूप से शिथिलाार व स्वच्छंदाचार होता | 99 /