________________ आगम निबंधमाला आते ही इसे असंयम दशा प्राप्त हो जाती है / इसका कारण यह है किं दूहरा(डबल) भार आने पर संयम नहीं रहता अर्थात् एक तो दोष सेवन करना और दूसरा परिणाम भी अशुभ करना, यह अक्षम्य हो जाता है। इसी कारण ये तीनों नियंठे प्रतिसेवी होने से शुभ लेश्या में ही रह सकते हैं / इस प्रतिसेवना कुशील नियंठे के भी पुलाक के समान निमित की अपेक्षा से 5 प्रकार कहे गये हैं१. ज्ञान प्रतिसेवना कुशील- ज्ञान सीखने, सीखाने व प्रचार करने इत्यादि ज्ञान से सम्बन्धित प्रसंगों से मूल गुण या उत्तरगुण में दोष लगावे / यथा-पुस्तके आदि खरीदे, मंगावे, दोषयुक्त ग्रहण करे, सवेतनिक(साधु के लिये वेतन दिया जाता हो ऐसे) पंडित से पढ़े / लहियों आदि से लिखाना, छपाई के कार्य में भाग लेना' इत्यादि अनेक मर्यादाओं का ज्ञान के लिए भंग करना / इन दोष प्रवत्तियों वाला ज्ञान प्रतिसेवना कुशील निर्ग्रन्थ कहलाता है / 2. दर्शन प्रतिसेवना कुशील- शुद्ध-श्रद्धा के प्राप्ति या प्रचार के लिये, दर्शन विषयों के अध्ययन के लिये जो मूल गुण या उत्तर गुण में दोष का सेवन करे वह दर्शन प्रतिसेवना कुशील कहलाता है / 3. चारित्र प्रतिसेवना कुशील- चारित्र की प्रवत्तियों के पालन करने में, पालन कराने में और पालन करने वालों को तैयार करने में, किसी प्रकार का मूल गुण या उत्तरगुण का दोष लगावे, तथा चारित्र पालन का साधन शरीर है इससे फिर ज्यादा संयम गुणों की वद्धि होगी, इस भावना से दोष सेवन करे, इस तरह चारित्र के निमित से दोष सेवन करने वाला चारित्र प्रतिसेवना कुशील निर्ग्रन्थ कहलाता है। 4. लिंग प्रतिसेवना कुशील- लिंग के विषय में अर्थात् वेषभूषा के सम्बन्ध से तथा साधुलिंग के आवश्यक उपकरण वस्त्र, पात्र, रजोहरण आदि है उनके निमित से दोष लगावे तथा लिंग सम्बन्धी किसी प्रकार की भगवदाज्ञा का उल्लंघन करे वह लिंग प्रतिसेवना कुशील निर्ग्रन्थ कहलाता है। 5. यथासूक्ष्म प्रतिसेवना कुशील- यह पाँचवाँ भेद सभी नियंठों म शेष बचे हुए विषय को संग्रह करने की अपेक्षा कहा गया है /