________________ आगम निबंधमाला निषिद्ध कार्यों में लगा रहा है, वह "कुशील" कहा जाता है / कोउय भूतिकम्मे, पसिणापसिणं णिमितमाजीवी / कक्क कुरुय सुमिण लक्खण, मूल मत विज्जोवजीवी कुसीलो उ // 4345 // १-जो कौतुककर्म करता है / २-भूतिकर्म करता है। ३-अगुष्ठप्रश्न या बाहुप्रश्न का फल कहता है अथवा आँखों में अंजन करके प्रश्नोत्तर करता है। ४-अतीत की, वर्तमान की और भविष्य की बातें बताकर आजीविका करता है। ५-जाति, कुल गण, कर्म और शिल्प से आजीविका करता है / ६-लौध्र, कल्क आदि से अपनी जंघा आदि पर उबटन करता है / ७-शरीर की कुचेष्टाएँ करता है / ८-शुभाशुभ स्वप्नों का फल कहता है / ९-स्त्रियों के या पुरुषों के मस-तिल आदि लक्षणों का शुभाशुभ फल कहता है / , १०-अनेक रोगों के उपशमन हेतु कंदमल का उपचार बताता है अथवा गर्भ गिराने का महापाप(मूलकर्म दोष) करता है / ११-मंत्र या विद्या से आजीविका करता है / वह "कुशील" कहा जाता है / ४-संसत्त : संखेवओ इमो-जो जारिसेसु मिलति, सो तारिसो चेव भवति, एरिसो संसत्तो णायव्वो ॥-चूर्णि / जो जैसे साधुओं के साथ रहता है, वैसा ही हो जाता है / वह संसक्त कहा जाता है / गाथा पासत्थ अहाछंदे, कुसील ओसण्णमेव संसत्ते / पियधम्मो पियधम्मेसु चेव इणमो तु संसत्तो // 4350 // जो पासत्थ, अहाछंद, कुशील और ओसण्ण के साथ मिलकर वैसा ही बन जाता है तथा प्रियधर्मी के साथ में रहता हुआ पियधर्मी बन जाता है / इस तरह की प्रवृत्ति करने वाला “संसक्त" कहलाता है। गाथा 77