________________ आगम निबंधमाला के अतिचारों का वर्जन नहीं करता है इसलिए वह सर्वपार्श्वस्थ है। देश-पार्श्वस्थ :सेज्जायर कुल णिस्सित, ठवणकुल पलोयणा अभिहडे वा पुव्वं पच्छा संथुत, णितियग्ग पिंडभोति पासत्थो // 4344 // १-जो शय्यादाता के घर से भिक्षा लेता है / २-जो श्रद्धालु गहस्थों के सहयोग से जीवन निर्वाह करता है / ३-जो स्थापनाकुलों में अकारण एषणा करना है / ४-बड़े सामुहिक भोज में आहार की एषणा करता है, संखडी के भोजन को देखने जाता है या कांच में अपना प्रतिबिब देखता है / ५-जो सम्मुख लाया हुआ आहार लेता है / ६-जो भिक्षा लेने के पहले या पीछे अपनी बढाई या दाता की प्रशंसा करता है। ७-जो निमंत्रण स्वीकार करके प्रतिदिन निमंत्रक के घर से आहारादि ग्रहण करता रहता है / इस प्रकार के दोषों का आचरण करता है, वह देश-पार्श्वस्थ है। ओसण्णो -अवसन्न :- . - यह देश्य शब्द है, इसके तीन समानार्थक पर्याय है- 1. अवसण्ण, 2. ओसण्ण, 3. उस्सण्ण / तीनों के तीन अर्थ- 1. अवसण्ण-आलसी 2. ओसण्ण-खण्डित चारित्र, 3. उस्सण्ण-संयम से शून्य / चूर्णि :- ओसण्णो दोसो-अधिकतर दोषों वाला / ओसण्णो बहुतरगुणावराही-अनेक गुणों को दूषित करने वाला / उयो(गतो-चुओ) वा संजमो तम्मि सुण्णो उस्सण्णो-संयम से च्युत अर्थात् संयम शून्य अवसन्न होता है। समायारिं वितहं ओसण्णो पावती तत्थ ॥४३४६॥-चूर्णि। संयम समाचारी से विपरीत आचरण करने वाला "अवसन्न" कहा जाता है / संयम समाचारियें निम्न समझेंआवासग सज्झाए, पडिलेहज्झाण भिक्ख भत्तठे / काउस्सग्ग-पडिक्कमणे, कितिकम्म णेव पडिलेहा // 4346 // आवासगं अणियतं करेति, हीणातिरित्त विवरीयं / गुरुवयण-णियोग-वलयमाणे, इणमो उ ओसण्णो // 4447 // 75