________________ आगम निबंधमाला १-आवासग-"आवस्सही" आदि दस प्रकार की समाचारी / २-सज्झाए-स्वाध्याय-सूत्रपौरूषी अर्थपौरूषी करना / ३-पडिलेह-दोनों समय वस्त्र पात्रादि का प्रतिलेखन करना / ४-झाण (ध्यान)- पूर्व रात्रि या पिछली रात्रि में ध्यान करना / ५-भिक्ख- दोष रहित गवेषणा करना / ६-भत्तठे- आगमोक्त विधि से आहार करना / ७-काउसग्ग- गमनागमन, गोचरी, प्रतिलेखन आदि का कायोत्सर्गकरना। ८-पडिक्कमणे- एकाग्र चित्त से चिंतन युक्त प्रतिक्रमण करना / ९-कितिकम्म- कृतिकर्म यथासमय सविधि गुरु व पर्याय ज्येष्ठ को विनय वंदन करना। १०-पडिलेहा(प्रतिलेखन)- बैठना आदि प्रत्येक कार्य देखकर करना तथा प्रत्येक वस्तु देखकर या प्रमार्जन कर उपयोग में लेना। जो इन दस प्रकार की समाचारियों को कभी करता है; कभी नहीं करता है, कभी विपरीत करता है / तथा शुद्ध पालन के लिये गुरूजनों द्वारा प्रेरणा किये जाने पर उनके वचनों की उपेक्षा या अवहेना करता है / वह "अवसन्न" कहा जाता है / तात्पर्य यह है कि स्वाध्याय काल का ध्यान न रखना अर्थात् यथासमय(चाउक्कालसज्झाय) नहीं करना। 34 अस्वाध्याय व कालिक उत्कालिक सूत्रों का ध्यान न रखना। प्रतिलेखन करते समय आपस में बातचीत करता / एकाग्रचित से अर्थ चितन करते हए भावपूर्वक प्रतिक्रमण न करना / गोचरी में आलस वति रखना, गवेषणा में उपेक्षा करना / टीपन, थाली आदि में मंगाकर आहार लेना, आहार करने की विधि का पालन नहीं करना अर्थात् परिभोगेषणा के 5 दोष तथा चवचव, सुड सुड आवाज करते हुए, नीचे गिराते हए, अत्यन्त जल्दी व अत्यत धीरे आहार करना, प्रमाद-स्खलनाओं का तत्काल मिच्छामि दुक्कड न देना आदि संयम-विधि के विपरीत आचरण करना, यह सब “अवसन्न" विहार है / ३-कुसील-कुशील : जो निन्दनीय कार्यों में अर्थात् संयम-जीवन में नहीं करने योग्य - ख्द