________________ आगम निबंधमाला सहयोग देने वाला संप्रसारिक कहा जाता है / जो साधु सांसारिक कार्यों में प्रवृत्त होकर गहस्थों के पूछने पर या बिना पूछे ही अपनी सलाह देवे कि “ऐसा करो" "ऐसा मत करो" ऐसा करने से बहुत नुकसान होगा, मैं कहूँ वैसा ही करो, इस प्रकार के कथन करने वाला “संप्रसारिक" कहा जाता है / उदाहरणार्थ कुछ कार्यों की सूची :१-विदेशयात्रार्थ जाने के समय का मुहूर्त देना / २-विदेश यात्रा करके वापिस आने पर प्रवेश समय का मुहूर्त देना / ३-व्यापार प्रारंभ करने का और नौकरी पर जाने का मुहूर्त बताना / ४-किसी को धन व्याज से दो या न दो, ऐसा कहना / ५-विवाह आदि सांसारिक कार्यों के मुहूर्त बताना / ६-तेजी, मंदी सूचक निमित्त-शास्त्रोक्त लक्षण देखकर व्यापारिक भविष्य बताना अर्थात् यह चीज खरीद लो, यह बेच दो इत्यादि कहना। इस प्रकार के और भी गृहस्थों के सांसारिक कार्यों में कम ज्यादा भाग लेने वाला "संप्रसारिक" कहलता है / -चूर्णि गा. 4362 // 10. अहाछंद(स्वछंद) :- अपने अभिप्राय-विचारों के अनुसार प्ररूपणा करने वाला अर्थात् आगम की या भगवदाज्ञा की अपेक्षा न रखते हुए स्वमति निर्णयानुसार प्ररूपणा करने वाला 'यथाछंद' कहलाता है / उस्सुत्तमणुवइठें, सच्छंद विगप्पियं अणणुवादी / परतत्ति पवत्ते, तितिणे य इणमो अहाछंदो // 3492 // भावार्थ- सूत्र से विपरीत, आचार्यादि की परम्परा से अप्राप्त, अपने ही मति से निर्णित, जो कि किसी सूत्र या अर्थ या तदुभय का अनुसरण करने वाले नहीं हो, इस प्रकार के विचारों की प्ररूपणा करने वाला यथाछंद कहलाता है तथा जो गृहस्थ के कार्यों की टीका करने में लगा रहने वाला, दूसरे साधु या गृहस्थों के अवगुण अपवाद बोलने वाला, दूसरों की निंदा और खुद की प्रसंशा करते रहने वाला, स्त्रीकथा आदि विकथाओं में प्रवत्त, तिणतिणाट प्रकृतिवाला अर्थात् बात-बात / 81 /