________________ आगम निबंधमाला निबंध-१४ पासत्था आदि स्वरूप भाष्य के आधार से पासत्था-पावस्थ : दसण-णाणचरित्ते, तवे य सुताहितो पवयणे य / तेसिं पासविहारी, पासत्थं तं वियाणाहि // 4341 // / दर्शन, ज्ञान, चरित्र तप और प्रवचन में जिन्होंने अपनी आत्मा को स्थापित किया है / ऐसे उद्यत विहारियों का जो पार्श्वविहारी है अर्थात् उनके समान आचार पालन नहीं करता है, उसे पार्श्वस्थ जानना चाहिए / पासोत्ति बंधणं तिय, एगळं बंधहेतवो पासा / पासत्थिय पासत्था, एसो मण्णोवि पज्जाओ // 4343 // . पाश और बंधन ये दोनों एकार्थक है / बंधन के जितने हेतु हैं वे सब पाश हैं / उनमें जो स्थित हैं वे पार्श्वस्थ है, यह भी पार्श्वस्थ का अन्य पर्याय(एक अर्थ) है / दुविहो खलु पासत्थो, देसे सव्वे य होई नायव्वो / सव्वे तिण्णि विगप्पा देसे सेज्जातरकुलादी // 4340 // पार्श्वस्थ दो प्रकार के जानने चाहिए-१ देशपार्श्वस्थ, 2 सर्व पार्श्वस्थ / देशपार्श्वस्थ शय्यातर कुलादि में एषणा करता है / सर्व पार्श्वस्थ के तीन विकल्प हैं / सर्वपार्श्वस्थ : दसण णाण चरित्ते, सत्थो अच्छति तहिं ण उज्जमति / एतेग उ पासत्थो, एसो अण्णोवि पज्जाओ // 4342 // 1. दर्शन, 2. ज्ञान, ३.चारित्र की आराधना में जो आलसी होता है अर्थात् उनकी आराधना में उद्यम नहीं करता है तथा उनके अतिचारअनाचारों का सेवन करता है वह सर्वपार्श्वस्थ है। . ___ वह सर्वपार्श्वस्थ सूत्र पौरिषी अर्थपोरिषी नहीं करता है, सम्यग्दर्शन के अतिचार शंका, कांक्षा आदि करता रहता है / सम्यक्चारित्र 74 / M - - - - - -