________________ आगम निबंधमाला , . बकुश के दोष के दर्जे छोटे (सूक्ष्म) होने से शिथिलाचारता टिकती है तो प्रतिसेवना के दोष के दर्जे उससे आगे के बड़े होने से शिथिलाचारता अक्षम्य होने से संयम नहीं टिक सकता है तो पुलाक में आवेश की तीव्रता आदि कारणों से उत्तर गुण दोष हो या मूल गुण दोष हो, अंतर्मुहूर्त से ज्यादा संयम नहीं रह सकता है / दोष सेवन होते हुए भी ये तीनों नियंठे अपनी सीमा में हो तो क्षम्य है और आगमकार उन्हें निर्ग्रन्थ स्वीकार करते हैं। अत: ये वंदनीय है। वैमानिक के सिवाय किसी भी गति में नहीं जाते है / सीमित दोष के सिवाय संपूर्ण ज्ञान दर्शन चरित्र की आराधना में और भगवदाज्ञा में सावधान रहने से जीवन भर भी वे निर्ग्रन्थ दशा में रह सकते हैं। खतरों से सावधानी नहीं रखे तो उनके दोष अक्षम्य हो जाने पर वे भाव से असंयम में पहुँच जाते हैं। पुलाक के संयम पर्यव अत्यधिक हास होने में मशक के मुख खोलने का दृष्टांत ठीक घटित होता है / बकुश के संयम पर्यव कम होने में पानी की टंकी में तराड़े पड़ने का दृष्टांत ठीक लागू पड़ता है और प्रतिसेवना कुशील के लिए पानी की कोठी में छिद्र होने का दृष्टांत ठीक घटित होता है और इन तीनों दृष्टांतो से इनका स्वरूप सरलतापूर्वक समझ में आ जाता है / टंकी के उपर के मुख से पानी भरा जाता है वैसे ही बकुश प्रतिसेवना में संयम पर्यव रूप पानी भरता रहता है साथ ही थोड़ा निकलता रहता है / मशक में नीचे के मुख से पानी शीघ्र निकल जाता है और उपर के मुख से पुनः भर दिया जाता है / वैसे ही पुलाक में शीघ्र संयम पर्यव खाली होते हैं और कुछ शेष रहने तक में वापिस कषाय कुशील में आकर संयम पर्यव का बढ़ना चालू हो जाता है / कषाय कुशील नियंठा- संयम ग्रहण के प्रारंभ में प्रत्येक जीव को यही नियंठा आता है / इस नियंठे वाला संयम में किसी भी प्रकार का दोष नहीं लगाता है / कोई भी दोष लगाने पर यह नियंठा नहीं रहता है। यदि संयम ग्रहण करते समय से ही कोई मूल गुण या उत्तर गुण में दोष लगाने वाले गुरु के पास दीक्षा लेता है और पहले दिन / 50 - - - - --