________________ आगम निबंधमाला पाप का सेवन करना / किसी का तिरस्कार, बहिष्कार, इन्सल्ट करना, झूठे आक्षेप लगाना / -सूय. 1-2-2 / (18) किसी भी साधु-साध्वी या गृहस्थ अथवा प्रतिपक्षी के प्रति अशुभ मन, अप्रशस्त सकल्प रखना, अशुभ वचनों का प्रयोग करना अर्थात् प्रथम महाव्रत की दूसरी, तीसरी भावना को दूषित करना / किसी को भी गिराने के लिए या किसी की हल्की लगाने रूप प्रवृति करना / -उत्त. 24 गुप्ति / (19) किसी भी साधु श्रावक आदि के प्रति रंज भाव, अमित्र भाव अथवा शत्रु भाव रखना / -भग.श. 13, उद्दे. 6 अभीचि कुमार / (20) आचारांग एवं निशीथ सूत्र अर्थ सहित कण्ठस्थ धारण किए बिना सिंघाड़ा प्रमुख बनना या जघन्य बहुश्रुत बने बिना ही आचार्य आदि कोई भी पद धारण कर लेना / -व्यव. 3 / (21) आचार्य-उपाध्याय दो पदवीधर के नेतत्व बिना किसी भी तरुण या नव दीक्षित साधु को या उनसे युक्त गच्छ को, रहना आगम विरुद्ध है। फिर भी बिना दो पदों के विशाल गच्छ को चलाना। और आचार्य उपाध्याय एवं प्रवर्तिनी तीन पदवीधरों के नेतत्व बिना साध्वियों का रहना / -व्यव. 4 / / (22) फल मेवे आदि के लिए निमंत्रित समय में या गोचरी के अतिरिक्त समय में जाना / (23) तपस्या नहीं करते हुए भी सदा विगयों का सेवन करना / - उत्तरा. 17 / (24) चाय आदि पदार्थ का किसी भी समय के लिए व्यसन होना / (25) प्रतिक्रमण एकाग्रचित से स्फूर्ति युक्त एवं भावपूर्वक नहीं करना, किन्तु निद्रा लेना (ऊँघना) एवं बातें करना / -अनुयोग द्वार सू. 27 / (26) योग्य-अयोग्य का विवेक किए बिना सबको एक साथ वाँचनो देना / -निशी. 16 / (27) अपने पारिवारिक कुलों में बहुश्रुत ही गोचरी जा सकता है अबहुश्रुत साधु-साध्वी आज्ञा से भी नहीं जा सकते / फिर भी अबहुश्रुत को भेजना या जाना / -व्यव. 6 / [ 69