________________ आगम निबंधमाला (28) उपरोक्त सत्ताइस दूषित आचार वालों को शिथिलाचारी न मानना या इनके साथ रहना एवं वंदन, आहार आदि सम्बन्ध रखना। -निशी. 16 / यदि शुद्धाचारी कहे जाने वाले भी इनमें से कई दूषित प्रवृत्तियों को करके प्रायश्चित्त से शुद्धि नहीं करते हैं तो वे भी आगम समाचारी में दोष लगाने वाले होने से उपरोक्त परिभाषाओं के अनुसार "अवसन्न" (ओसन्ना) शिथिलाचारी में समाविष्ट होते है / इस स्थिति में वे भी दूषित आचार वालों की दूसरी श्रेणी में आते हैं / इन कारणों से उनको भी परस्पर दूसरी तीसरी श्रेणी वालों को गीतार्थ के निर्णय से वंदन आदि करने में प्रायश्चित्त नहीं आता है / (पहेली श्रेणी में यथाच्छंद, दूसरी श्रेणी में पासत्थादि चार, तीसरी श्रेणी में शेष काहिया आदि पाँच) सम्भवतः इसी अपेक्षा को लेकर गुजरात की विभिन्न समाचारी वाली संप्रदायों में आज भी वंदन आदि व्यवहार किये जाते हैं / जैन समाज के प्रेम मय वातावरण के लिये अन्य प्रान्तों वाले श्रमणों को भी इस पर गहरा विचार चिंतन कर कोई उदार निर्णय लेना चाहिए। . जिससे जैन समाज में फिरका परस्ती, छींटाकसी, ईर्ष्या, द्वेष, निंदा प्रवति, आपसी बढ़ती हुई दूरियाँ एवं मनोमालिन्य वद्धि आदि अवगुणों में सुधार हो सके। साथ ही प्रेम, एकता, सहृदयता, भावों की शुद्धि, शांत-सुंदर वातावरण बन कर धर्म साधकों के आत्म गुणों का विकास हो सके। भिन्न-भिन्न गच्छ एवं विभिन्न समाचारी वाले आज भी अपनी इच्छा होने पर आपस में मैत्री सम्बन्ध और वंदन व्यवहार रख लेते हैं / यह व्यवहार भी उक्त निर्णय को पुष्ट करने वाला है। .. अपने आपको शुद्धाचारी मानने वाले श्रमण किसी प्रकार की कलुषता या अन्य वातावरण के कारण अपनी इच्छा होने मात्र से ही पुनः वंदन व्यवहार बंद कर देते हैं / जब कि आचार तो उन दोनों का पहले पीछे वही होता है / इस प्रकार वर्तमान में वंदन व्यवहार का निर्णय आगम आशय [ 70 -